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धनतेरस की कथा/STORY OF DHANTERRAS IN HINDI

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  धनतेरस की रोचक कथा     धनतेरस  ,  जिसे धन त्रयोदशी या धन्वंतरि त्रयोदशी के रूप में भी जाना जाता है ,  विक्रम संवत में कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष के तेरहवें चंद्र दिवस पर धनतेरस मनाया जाता है.   यह दीवाली के त्योहार का पहला दिन है. इस वर्ष 20 21 में    धनतेरस  मंगलवार , 2 नवंबर को है.             हिन्दू पुराणों के अनुसार , इस दिन भगवान धन्वंतरि का जन्म हुआ था.   धनतेरस पर भगवान धन्वंतरि की पूजा होती है। भगवान धन्वंतरि ,  समुद्र मंथन के दौरान   समुद्र से उत्पन्न हुए. उनके   एक हाथ में अमृत से भरा कलश था और दूसरे हाथ में आयुर्वेद का पवित्र ग्रंथ था.   वे आयुर्वेद के देवता हैं , जिन्होंने मानव जाति की भलाई के लिए संसार को आयुर्वेद का ज्ञान दिया और बीमारी के कष्ट से छुटकारा पाने में संसार की मदद की. धन्वंतरि को   देवताओं का वैद्य माना जाता है.         धनतेरस, एक कथा          एक प्राचीन किंवदंती के अ...

शरद् पूर्णिमा का महत्व और गणपति की सुन्दर कथा/Importance & significance of sharad purnima 2020

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  शरद् पूर्णिमा के अवसर पर विशेष उपहार --- शरद् पूर्णिमा का महत्व    शरद् पूर्णिमा की रात चंद्रमा पृथ्वी के बहुत निकट दिखाई देता है. अपने बेहद खूबसूरत रूप में, अपने भक्तों पर अमृत की वर्षा करता है. धर्म ग्रंथों के अनुसार इस दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है और बङा मोहक लगता है. इस रात की सुंदरता को निहारने देवता भी धरती पर उतर आते हैं. इसे देवी लक्ष्मी का जन्मदिन माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन मां लक्ष्मी रात्रि में पृथ्वी पर भ्रमण करते हुए ,  अपने भक्तों को सुख समृद्धि का वरदान देती हैं.   अश्विन मास में शारदीय नवरात्र के बाद की पूर्णिमा को शरद् पूर्णिमा कहते हैं. इसे देव दीपावली ,   त्रिपुरारी पूर्णिमा ,   रास पूर्णिमा और कोजागिरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन चंद्रमा ,   महालक्ष्मी और विष्णु भगवान पूजा की जाती है. गंगा स्नान और दीप दान किया जाता है. लगभग सारे भारत के विभिन्न क्षेत्रों में, इसे विभिन्न रूप से मनाया जाता है.   शरद् पूर्णिमा की रात चंद्रमा अमृत की वर्षा करता है. इस अमृत को प्राप्त करने के लि...

ORIGIN OF JYOTISH KNOWLEDGE- A HINDI STORY FROM PURAN

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ज्योतिष ज्ञान के उद्भव की कहानी      एक बार भगवान् नारायण क्षीर सागर में शेष शय्या पर विश्राम कर रहे थे , लक्ष्मी चरण दबा रही थीं , बङा ही मनोरम दृश्य था.    उसी समय महर्षि श्रेष्ठ भृगु वैकुण्ठ पहुंचे। भृगु किसी कारणवश बहुत क्रोध में थे और विष्णु भगवान से तुरंत मिलना चाहते थे। भगवान के द्वारपाल जय-विजय ने उन्हें प्रणाम कर कहा , " नारायण इस समय विश्रामाधीन हैं अत: उन तक आपको जाने देना संभव नहीं है।" महर्षि रुष्ट हुए व जय-विजय को शाप दिया, "तुम्हें मुझे रोकने के अपराध में तीन बार राक्षस योनि में जन्म लेकर पृथ्वी पर रहना होगा।" जयविजय मौन नतमस्तक खड़े हो गए ।       इधर क्रोध के अभिभूत भृगु उस स्थान पर जा पहुंचे, जहाँ भगवान शयन कर रहे थे। विष्णु को शयन करते देख भृगु ऋषि का क्रोध उमड़ पड़ा , उन्होंने सोचा , " मुझे देख विष्णु ने जान-बूझकर आंखें मूंद ली हैं। मेरी अवज्ञा कर रहे हैं।" क्रोध में उफनते ऋषि ने उसी समय श्री विष्णु के वक्षस्थल पर अपने दाएं पैर का प्रहार किया , विष्णुजी की आंखें खुल गईं , वे उठ खङे हुए और हाथ जोड़ प्रार्थना कर...

पत्नी का भय -A HINDI STORY FROM SHREE PURAN

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पत्नी का भय क्या आप अपनी पत्नी से डरते हैं ? इस बात पर झिझकने या शरमाने कि कोई आवश्यकता नहीं है. ऐसा तो पौराणिक काल से होता आया है. क्या आपको विश्वास नहीं हो रहा है ? तो लीजिए... प्रस्तुत है श्री पुराण से एक रोचक कथा...       सदा सर्वदा से संसार में स्त्री के वशीभूत जो-जो लोग हैं और जो-जो लोग पहले हो चुके हैं, उन सब में सर्वश्रेष्ठ है- शैव्या का पति राजा ज्यामघ. राजा ज्यामघ एक शक्तिशाली राज्य का प्रभुता संपन्न राजा था. राज्य में उसका बहुत   सम्मान और दबदबा था. उसके बाहुबल और चतुर राजनीति के सब कायल थे. प्रभु कि भरपूर कृपा थी उसपर, पर अहो भाग्य ! कोई संतान नहीं थी.       यूं तो राजा ज्यामघ का विवाह सही समय पर राजकुमारी शैव्या से हो गया था परन्तु काफी समय बीत जाने पर भी उन्हें संतान सुख प्राप्त नहीं हुआ था. वैद- हकीम, दबा-दारू, दुआ-प्रार्थना, झाङ-फूंक सब बेअसर साबित हो चुके थे. राजा ज्यामघ को संतान की अति इच्छा थी पर शैव्या से वह बहुत डरता था. बहुत बार संतान की इच्छा के कारण, दूसरा विवाह करने की सोची पर शैव्या के भय के कारण यह ...

AITAREYA BRAHMANA- A STORY FROM RIG-VEDA

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पिता द्वारा उपेक्षित अपनी माता को, उसके अधिकार वापस दिलाने वाले, पुत्र की कथा...      विजयनगर के एक विद्वान व्यक्ति थे, जिनका नाम महिदास था. उनकी माता का नाम इतरा था. इतर संस्कृत का एक शब्द है, इसका हिन्दी में अर्थ है - अन्य या अस्वीकृत. इतरा एक ऋषि कि अस्वीकृत पत्नी थी इसलिए उनका पुत्र ऐतरेय कहलाया. माँ कि पीङा को दूर करने के उद्देश्य से महिदास ने ऐतरेय ब्राह्मण कि रचना की. (aitareya meaning in English - unique).  यह कथा ऋग्वेद से सम्बन्धित है. ऐतरेय ब्राह्मण की कहानी     मांडुकी नाम के एक ऋषि थे , उनकी कई पत्नियाँ थी. एक का नाम इतरा था. इतरा भगवान की परम भक्त थी तथा अत्यंत पवित्र जीवन व्यतीत करती थी.   इतरा ने पुत्र प्राप्ति की इच्छा से कठिन तपस्या की तथा भगवान ने उसकी तपस्या तथा प्रार्थना से प्रसन्न होकर, उसकी इच्छा को पूरा कर दिया. उसके घर में एक पुत्र का जन्म हुआ. जो अत्यंत सुंदर तथा आकर्षक था. उन्होंने बालक का नाम महिदास रखा. यद्यपि बचपन से ही बालक महिदास अलौकिक एवं चमत्कारपूर्ण घटनाओं का जनक था , लेकिन प्रायः चुप ह...