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Showing posts from September, 2019

शिव-पार्वती और नन्दी की कथा

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शिव-पार्वती और नन्दी एक बार पार्वतीजी ने शिवजी से पूछा , “ मृत्युलोक पृथ्वी पर मनुष्य इतने दुखी क्यों हैं ?”. जगत जननी अपनी संतानों को निरंतर दुख और क्लेश में घिरा देख कर द्रवित थीं. इसपर शंकर भगवान बोले , “ प्रिये !, मनुष्य के दुख का सबसे बङा   कारण, उसकी परनिंदा करने कि आदत है. प्रत्येक व्यक्ति दूसरे में कमियाँ ही कमियाँ देखता है. उसे सामने वाला व्यक्ति हर परिस्थिति में गलत ही लगता है. भगवत भजन के स्थान पर परनिन्दा में ही लीन रहता है और अपने आप को महान और निष्पाप सिद्ध करने में लगा रहता है. ”, इस बात को सुनकर   पार्वतीजी कुछ बोली तो नहीं, पर सहमत भी नहीं हुईं. भोलेनाथ उनकी शंका को समझ गए.               “ बहुत दिन हो गये हैं, कहीं घूमने गए हुए , चलो पृथ्वी पर घूम कर आते हैं. ” शंकर भगवान ने देवी का मन बहलाने के लिए कहा. इस प्रस्ताव से पार्वतीजी बहुत प्रसन्न हुईं और तुरंत तैयार हो गयीं. पति के साथ घूमने जाने का अवसर था इसलिए उन्होंने सुन्दर-सुन्दर वस्त्र पहने , खूब श्रंगार किया और लावण्यमयी तरुणी के रूप में शिवजी के समीप आईं. पर ये क्या ? , शंकर भगवान जैसे थ

देवी पार्वती और अशोक का गुच्छा

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शारदीय नवरात्रि के उपलक्क्ष में शिव-पार्वती कि एक रोचक कथा  देवी  पार्वती और अशोक का गुच्छा      एक समय की बात है,  महर्षि   कश्यप   घूमते- घूमते पर्वतराज   हिमालय के महल    में जा पहुँचें. उनके अचानक आगमन से पर्वतराज बहुत प्रसन्न हुये.    हिमालय ने उनका यथोचित    प्रेमपूर्वक आदर सत्कार किया . पर्वतराज की अतिथि सेवा से  तप्त  महर्षि   कश्यप  गिरिराज   हिमालय   को अनेको अनेक आर्शिवाद देने लगे. पर्वतराज   हिमालय   कृतज्ञभाव से हाथ जोङकर बोले, 'मुनिवर आप तो सर्वज्ञानी हैं. कृपया बताइए कि    मैं कैसे  मो क्ष प्राप्त कर सकता हूँ ? ’.   इसपर    महर्षि   कश्यप   बोले, ‘ मो क्ष प्राप्ति के लिए श्रे ष्ठ संतान का होना आवश्यक है . उत्तम गुणों से युक्त संतान, न केवल अपना, अपितु समस्त परिवार का उद्धार करती है, इसलिए हे पर्वतराज ! आप संतान प्राप्ति हेतु यज्ञ करें और मनवान्छित फल प्राप्त करें. ’            महर्षि कश्यप के बताए अ नुसार गिरिराज हिमालय ने अनेक वर्षों तक घोर तपस्या की. उनके तप से खुश होकर ब्रह्माजी प्रकट हुए . गिरिराज हिमालय ब्रह्