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बाल गणेश और घमंडी चंद्रमा को श्राप की कथा

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बाल गणेश और घमंडी चंद्रमा की कथा      एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक दिन भगवान गणपति   का जन्मदिन था. जन्मदिन का अवसर था इसलिए बाल गणेश बेहद खुश थे. कैलाश पर्वत पर खूब धूमधाम हो रही थी. उसी दिन , धन के देवता कुबेर का आमंत्रण , शिव जी के पास आया. शिवजी कुबेर के मन की अवस्था जानते थे , वे जानते थे कि वह अपने ऐश्वर्य का दिखावा करना चाहता है. उन्होंने गणपति जी को   कुबेर के यहां दावत पर जाने के लिए कहा. अपने गणपति जी तो मिठाइयों के शौकीन है .    खुशी-खुशी तैयार हो गए, और पहुँच गए - कुबेर के यहाँ .      कुबेर ने दावत दी थी इसलिए इंतजाम भी बड़े पैमाने पर किया गया था. तरह-तरह के अलौकिक पकवान बनाए जा रहे थे. विशेष रूप से मिठाइयां बहुत ही लाजवाब थी. पूरे वातावरण में तरह-तरह के पकवानों की सौंधी-सौंधी, भीनी-भीनी महक तैर रही थी. विशेष रुप से गणपति जी के लिए मोदक बनाए जा रहे थे , उनमें मेवे, मिश्री भरे जा रहे थे.   लड्डूयों कि खुशबू से बाल गणपति जी के नथने फङकने लगे और मुंह में पानी आ गया.       कुबेर की दावत में उन्होंने भरपूर  पकवान  खाए. ढेर सारी मिठाइयां खाने के बाद भी, उनका मन नह

ORIGIN OF JYOTISH KNOWLEDGE- A HINDI STORY FROM PURAN

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ज्योतिष ज्ञान के उद्भव की कहानी      एक बार भगवान् नारायण क्षीर सागर में शेष शय्या पर विश्राम कर रहे थे , लक्ष्मी चरण दबा रही थीं , बङा ही मनोरम दृश्य था.    उसी समय महर्षि श्रेष्ठ भृगु वैकुण्ठ पहुंचे। भृगु किसी कारणवश बहुत क्रोध में थे और विष्णु भगवान से तुरंत मिलना चाहते थे। भगवान के द्वारपाल जय-विजय ने उन्हें प्रणाम कर कहा , " नारायण इस समय विश्रामाधीन हैं अत: उन तक आपको जाने देना संभव नहीं है।" महर्षि रुष्ट हुए व जय-विजय को शाप दिया, "तुम्हें मुझे रोकने के अपराध में तीन बार राक्षस योनि में जन्म लेकर पृथ्वी पर रहना होगा।" जयविजय मौन नतमस्तक खड़े हो गए ।       इधर क्रोध के अभिभूत भृगु उस स्थान पर जा पहुंचे, जहाँ भगवान शयन कर रहे थे। विष्णु को शयन करते देख भृगु ऋषि का क्रोध उमड़ पड़ा , उन्होंने सोचा , " मुझे देख विष्णु ने जान-बूझकर आंखें मूंद ली हैं। मेरी अवज्ञा कर रहे हैं।" क्रोध में उफनते ऋषि ने उसी समय श्री विष्णु के वक्षस्थल पर अपने दाएं पैर का प्रहार किया , विष्णुजी की आंखें खुल गईं , वे उठ खङे हुए और हाथ जोड़ प्रार्थना करते बोले,"

माँ पार्वती और उनका व्यक्तिगत गण/ Maa Parvati And Her Personal Gan [Bodygaurd], STORY IN HINDI

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  माँ पार्वती को क्यों अपने लिए व्यक्तिगत गण कि आवश्यकता पङी ? ,  जानने के लिए पढें---      माँ पार्वती के बारे में सभी जानते हैं. उनके नौ रूप, विभिन्न अवतार, शिव- पार्वती विवाह, शंकर - पार्वती का आपसी प्रेम,   माँ पार्वती के साथ गणेश और कार्तिकेय,  भगवान  शिव ने  माँ पार्वती को धर्म और मोक्ष के रहस्य बताए,  देवी माँ पार्वती के 108 नाम [ जैसे उमा, गौरी, दुर्गा, सती, भवानी, भद्राकाली, चामुंडा, चद्रघंटा, माहेश्वरी, लक्ष्मी, नारायणी, महिषासुरमर्दिनी, शाम्भवी, वैष्णवी आदि ], के बारे में तो बहुत सारी कथाएँ प्रचलित हैं. लेकिन शायद ही आपको पता हो कि माँ पार्वती को क्यों अपने लिए व्यक्तिगत गण कि आवश्यकता पङी …    माँ पार्वती और उनका व्यक्तिगत गण        भगवती पार्वती की दो सखियाँ थीं, जया और विजया . वे दोनों अत्यन्त रूपवती , गुणवती , विवेकमयी और मधुरहासिनी थीं . पार्वतीजी उनसे बहुत आदर और प्रेम सहित व्यवहार करती थीं. एक दिन उन सखियों ने पार्वतीजी से कुछ झिझकते हुए कहा, “ सखि ! अपना कोई गण नहीं है , हमारा निजी एक गण तो अवश्य होना ही चाहिए। “   मा

एकदन्त गणेशजी की कथा

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एकदन्त गणेशजी की कथा आपने कभी सोचा ,“ गणेशजी का एक दाँत टूटा हुआ क्यों है ?” इस सन्दर्भ में कई कहानियां प्रचलित हैं. एक प्रसंग   के अनुसार   गणेशजी ने स्वयं अपना   दाँत तोङ कर उसकी लेखनी बनाई थी. जिससे कि वे गति के साथ, वेदव्यास के द्वारा बोली जा रही महाभारत को लिख सकें. एक अन्य प्रसंग   के अनुसार   गणेशजी ने   किसी कारणवश क्रोध में आकर स्वयं अपना   दाँत तोङ कर चन्द्रमा कि ओर फेंका था. मुझे जो कहानी व्यक्तिगत रुप से सबसे ज्यादा पसंद   है, वह इस प्रकार से है ---    परशुराम विष्णु भगवान के अवतार हैं. परशुराम जिसका अर्थ है - फरसे के साथ, राम. परशुराम को यह फरसा स्वयं भगवान शिव से उपहार स्वरूप प्राप्त हुआ था.    एक बार उन्होंने अहंकारी कार्तवीर्य अर्जुन राजा की पूरी सेना के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। उन्होंने अपने समस्त दुश्मनों को मार डाला और जीत गए. परशुराम को एहसास हुआ कि उन्हें ये जीत भगवान शिव की कृपा से मिली है। भगवान शिव युद्ध कला में उनके गुरु थे। युद्ध के बाद वे अपने आपको थका हुआ महसूस कर रहे थे , फिर भी वो अपने गुरु को धन्यवाद देना चाहते थे.

गणेशजी और खीर की कहानी

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करवाचौथ पर विशेष रूप से आपके लिए ➤    यह एक गणेश जी कि कथा है. जो बहुत प्रचलित है.   हमेशा से व्रत-उपवास के समय कही सुनी जाती है. विनायक कथा के रुप में इसे ज्यादा जाना जाता है. गणेशजी और खीर की कहानी गण   एक बार गणेशजी ने पृथ्वी के मनुष्यों परीक्षा लेने का विचार किया. वे अपना रुप बदल कर पृथ्वी पर भ्रमण करने लगे. उन्होंने एक बालक का रूप बना लिया. एक हाथ में एक चम्मच में दूध   ले लिया और दूसरे हाथ में एक चुटकी चावल ले लिए और गली-गली घूमने लगे, साथ ही साथ आवाज लगाते चल रहे थे, “ कोई मेरे लिए खीर बना दे , कोई मेरे लिए खीर बना दे …”. कोई भी उनपर ध्यान नहीं दे रहा था बल्कि लोग उनपर हँस रहे थे. वे लगातार एक गांव के बाद , दूसरे गांव इसी तरह चक्कर लगाते हुए पुकारते रहे.   पर कोई खीर बनाने के लिए तैयार नहीं था. सुबह से शाम  हो  गई गणेश जी लगातार   घूमते रहे.                एक बुढ़िया थी. शाम के वक्त अपनी झोपड़ी के बाहर बैठी हुई   थी , तभी गणेश जी वहां से पुकारते हुए निकले   कि “ कोई मेरी खीर बना दे , कोई मेरी खीर बना दे …..” बुढ़िया बहु