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Showing posts from November, 2019

AITAREYA BRAHMANA- A STORY FROM RIG-VEDA

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पिता द्वारा उपेक्षित अपनी माता को, उसके अधिकार वापस दिलाने वाले, पुत्र की कथा...      विजयनगर के एक विद्वान व्यक्ति थे, जिनका नाम महिदास था. उनकी माता का नाम इतरा था. इतर संस्कृत का एक शब्द है, इसका हिन्दी में अर्थ है - अन्य या अस्वीकृत. इतरा एक ऋषि कि अस्वीकृत पत्नी थी इसलिए उनका पुत्र ऐतरेय कहलाया. माँ कि पीङा को दूर करने के उद्देश्य से महिदास ने ऐतरेय ब्राह्मण कि रचना की. (aitareya meaning in English - unique).  यह कथा ऋग्वेद से सम्बन्धित है. ऐतरेय ब्राह्मण की कहानी     मांडुकी नाम के एक ऋषि थे , उनकी कई पत्नियाँ थी. एक का नाम इतरा था. इतरा भगवान की परम भक्त थी तथा अत्यंत पवित्र जीवन व्यतीत करती थी.   इतरा ने पुत्र प्राप्ति की इच्छा से कठिन तपस्या की तथा भगवान ने उसकी तपस्या तथा प्रार्थना से प्रसन्न होकर, उसकी इच्छा को पूरा कर दिया. उसके घर में एक पुत्र का जन्म हुआ. जो अत्यंत सुंदर तथा आकर्षक था. उन्होंने बालक का नाम महिदास रखा. यद्यपि बचपन से ही बालक महिदास अलौकिक एवं चमत्कारपूर्ण घटनाओं का जनक था , लेकिन प्रायः चुप ही रहता था. आश्चर्य की बात तो यह थी, वह हमेशा

माँ पार्वती और उनका व्यक्तिगत गण/ Maa Parvati And Her Personal Gan [Bodygaurd], STORY IN HINDI

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  माँ पार्वती को क्यों अपने लिए व्यक्तिगत गण कि आवश्यकता पङी ? ,  जानने के लिए पढें---      माँ पार्वती के बारे में सभी जानते हैं. उनके नौ रूप, विभिन्न अवतार, शिव- पार्वती विवाह, शंकर - पार्वती का आपसी प्रेम,   माँ पार्वती के साथ गणेश और कार्तिकेय,  भगवान  शिव ने  माँ पार्वती को धर्म और मोक्ष के रहस्य बताए,  देवी माँ पार्वती के 108 नाम [ जैसे उमा, गौरी, दुर्गा, सती, भवानी, भद्राकाली, चामुंडा, चद्रघंटा, माहेश्वरी, लक्ष्मी, नारायणी, महिषासुरमर्दिनी, शाम्भवी, वैष्णवी आदि ], के बारे में तो बहुत सारी कथाएँ प्रचलित हैं. लेकिन शायद ही आपको पता हो कि माँ पार्वती को क्यों अपने लिए व्यक्तिगत गण कि आवश्यकता पङी …    माँ पार्वती और उनका व्यक्तिगत गण        भगवती पार्वती की दो सखियाँ थीं, जया और विजया . वे दोनों अत्यन्त रूपवती , गुणवती , विवेकमयी और मधुरहासिनी थीं . पार्वतीजी उनसे बहुत आदर और प्रेम सहित व्यवहार करती थीं. एक दिन उन सखियों ने पार्वतीजी से कुछ झिझकते हुए कहा, “ सखि ! अपना कोई गण नहीं है , हमारा निजी एक गण तो अवश्य होना ही चाहिए। “   मा

TULSI-SHALIGRAM VIVAH STORY IN HINDI

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वृंदा की मृत्यु पर विष्णु भगवान क्यों द्रवित होकर विलाप करने लगे ?, जानने के लिए पढें---       कार्तिक  मास  के  शुक्ल  पक्ष  की  एकादशी  को  देवउठनी  एकादशी  या    तुलसी    विवाह  उत्सव  भी  कहा   जाता    है . शास्त्रों  में    ऐसा  कहा  गया  है  कि  इस  दिन भगवान    विष्णु  चार   महीने  कि    नींद  के    बाद  जागते  हैं .   उनके  जागने के  साथ  ही    हिन्दु    रिति    रिवाजों  के  अनुसार  विवाह - शादी  के  लग्न    शुरू  हो  जाते  हैं .   इस  दिन  तुलसी  का  विवाह  शालिग्राम  के  साथ  किया  जाता  है .    भारतीय    संस्कृति  में    तुलसी  के  पौधे  को  गंगा - यमुना  के  समान  पवित्र  माना  गया  है .   तुलसी  को    विष्णुप्रिया  भी  कहा    जाता  है .   भगवान    विष्णु  के  पूजन    में    तुलसी  चढ़ाना  आवश्यक    समझा  जाता  है .   तुलसी  का    पौधा    स्वास्थ्य  के    लिए  अति    लाभकारी  होने  के  साथ    आसपास    के  पर्यावरण  को    भी    शुद्ध  करता  है . तुलसी विवाह की रोचक कथा     भग