TULSI-SHALIGRAM VIVAH STORY IN HINDI
वृंदा की मृत्यु पर विष्णु भगवान क्यों द्रवित
होकर विलाप करने लगे?, जानने
के लिए पढें---
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी या तुलसी विवाह उत्सव भी कहा जाता है. शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि इस दिन भगवान विष्णु चार महीने कि नींद के बाद जागते हैं. उनके जागने के साथ ही हिन्दु रिति रिवाजों के अनुसार विवाह-शादी के लग्न शुरू हो जाते हैं. इस दिन तुलसी का विवाह शालिग्राम के साथ किया जाता है. भारतीय संस्कृति में तुलसी के पौधे को गंगा-यमुना के समान पवित्र माना गया है. तुलसी को विष्णुप्रिया भी कहा जाता है. भगवान विष्णु के पूजन में तुलसी चढ़ाना आवश्यक समझा जाता है. तुलसी का पौधा स्वास्थ्य के लिए अति लाभकारी होने के साथ आसपास के पर्यावरण को भी शुद्ध करता है.
तुलसी विवाह की रोचक कथा
भगवान शिव का क्रोध बहुत शक्तिशाली है. एक बार किसी बात पर उन्हें बहुत क्रोध आ गया. उनके क्रोध से किसी का अहित
न हो इसलिए उन्होंने अपना सारा क्रोध समुद्र की लहरों में बहा दिया. तभी समुद्र की
लहरों में एकत्रित, वह क्रोध तुरंत! एक बच्चे के रूप में बदल
गया. बच्चा पैदा होते ही शोर मचाते हुए इधर-उधर भागने-दौड़ने लगा. भगवान ब्रह्मा ने
बच्चे के शोर मचाने की आवाज सुनी तो वहां
आए. उन्होंने बच्चे को देखा और प्यार से अपनी गोद में उठा लिया. पर आश्चर्य!
बच्चा असाधारण रूप से भारी था.
भगवान ब्रह्मा ने
भारी बच्चे को मुश्किल से उठाया हुआ था, जैसे ही वे उसे प्यार करने के लिए उसके
मुख के करीब आए, उसने उनकी दाढ़ी को जोर से खींचा. जिस बल के साथ बच्चे ने
उनकी दाढ़ी को खींचा, उससे भगवान ब्रह्मा
की आंखों में आंसू आ गए. भगवान
ब्रह्मा ने बच्चे को देखा और कहा, “तुम बहुत बलवान हो ... तुम अपनी ताकत से मेरी आँखों में जल
लाए हो ... इसके लिए मैं तुम्हें जलंधर नाम देता हूं.”
जैसे-जैसे जलंधर
बड़ा होता गया, वैसे-वैसे वह और-और
ताकतवर होता चला गया. अपनी ताकत पर गर्व करता हुआ, वह बहुत अहंकारी भी हो गया. समय
के साथ वह इतना बलवान हो गया कि अब वह अपनी शक्ति से किसी को भी हरा सकने में
सक्षम था. अब वह असुरों का राजी बनना चाहता था.
कलनामी नाम से एक
बहुत शक्तिशाली असुर था. उसकी विवाह योग्य आयु की एक सुंदर बेटी थी. उसका नाम
वृंदा था. वृंदा बेहद बुद्धिमान थी. वह भगवान विष्णु की अनन्य भक्त थी. जलंधर ने,
कलनामी से, अपनी शादी वृंदा से करने की इच्छा जताई. कलनामी तुरंत तैयार हो गया.
जलंधर की ताकत से प्रभावित, वृंदा भी उससे शादी करने के लिए तैयार हो गई. इस तरह
वृंदा और जलंधर का विवाह हो गया.
भगवान विष्णु कि अनन्य
भक्ति के कारण, वृंदा के पास बहुत सारी यौगिक शक्तियां थीं. वृंदा बहुत
पतिवृता स्त्री थी. उसके पतिवृता धर्म की वजह से जलंधर और अधिक शक्तिशाली और अजेय
हो गया. असुरों के गुरु शुक्राचार्य ने उसके पराक्रम से प्रभावित होकर, उसे असुरों
के राजा बना दिया.
जलंधर असुरों की
सहायता से पूरी पृथ्वी पर शासन करने कि इच्छा रखता था. इसी इच्छा से, उसने युद्ध
करना प्रारंभ कर दिया. शक्तिशाली असुरों ने भी जलंधर का अनुसरण किया. पृथ्वी पर
सभी शक्तिशाली राजा जलंधर से हार गए. जल्द ही जलंधर ने पूरी पृथ्वी पर अपना पूर्ण
शासन स्थापित कर लिया.
पृथ्वी पर विजय के
बाद, जलंधर ने स्वर्ग पर अपनी नजरे गङा लीं. स्वर्ग में इंद्र और अन्य देवता जलंधर की योजनाओं से पूरी तरह से अनभिज्ञ थे.
समय देख कर जलंधर ने स्वर्ग पर हमला कर दिया. अचानक हुए, जलंधर के हमले की वजह से
देवता बौखला गए. देवताओं को ये समझ ही नहीं आ रहा था कि करना क्या है. अपनी रक्षा
करने में असमर्थ देवता जलंधर से हार गए.
अब तीनों लोकों
में असुर अपनी मनमानी करने लगे. असुरों के अत्याचार से दसों दिशाओं में हाहाकार मच
गया. तीनों लोकों देवता मिलकर भगवान ब्रह्मा के पास गए. भगवान ब्रह्मा ने देवताओं
को देखा और उनसे उनकी हार का वृतांत जाना. भगवान ब्रह्मा उन सभी को जलंधर के जन्म
के बारे में बताया और कहा, “भगवान
शिव के क्रोध से जलंधर का जन्म हुआ था, इसलिए उसे भगवान शिव
द्वारा ही हराया जा सकता है.”
देवताओं ने भगवान
शिव से अनुरोध किया कि वे जलंधर को समझाएँ, जिससे उसके असुरों का
उत्पात शांत हो. देवताओं से सहमत होकर भगवान शिव जलंधर को समझाने के लिए उसके पास
गए. परन्तु जलंधर अपने बल के घमंड में
बिलकुल अंधा हो गया था. न केवल उसने शांति के लिए, भगवान शिव के प्रस्ताव को ठुकरा
दिया बल्कि उसने उनका खुलेआम अपमान किया.
बड़ी मुश्किल से भगवान शिव ने अपने क्रोध पर अंकुश लगाया और
वापस कैलाश पर लौट आए. देवताओं के साथ विचार-विमर्श करने के बाद भगवान शिव ने कहा, “ हमें
जलंधर को नष्ट करने की जरूरत है, वह बहुत घमंडी हो गया है. मैं उससे युद्ध करूंगा.” देवता बहुत प्रसन्न हुए. यदि स्वयं भगवान शिव जलंधर से युद्ध करते हैं,
तो उन्हें जीत अवश्य मिलेगी, ऐसा उनका पूर्ण
विश्वास था.
अगले दिन भगवान शिव और जलंधर बहुत घमासान युद्ध हुआ.
भगवान शिव ने जलंधर को बहुत मजबूत पाया. उसके पास शारीरिक शक्ति तो थी ही, साथ में
भ्रम फैलाने की शक्ति भी थी. जलंधर ने अपनी सभी शक्तियों का उपयोग किया और उसने
भगवान शिव, उनके गण और देवताओं के लिए एक शक्तिशाली भ्रम की स्थिति पैदा
कर दी. इस प्रकार के हमले की आशंका न करते हुए, भगवान शिव और
अन्य देवता लोग, स्तब्ध और भ्रम की स्थिति में फंस गए.
मौका देखकर पहले वह माता लक्ष्मी को पाने की कामना से शीरसागर में गया, परंतु समुद्र से ही उत्पन्न होने के कारण माता लक्ष्मी ने उसे अपने भाई के
रूप में स्वीकार किया. वहां से पराजित होने के बावजूद, अपनी सत्ता के मद में चूर
वह देवी पार्वती को पाने की लालसा से कैलाश पर गया, जहां उसने देवी पार्वती के सामने,
भगवान शिव की तरह अपना रूप बदल लिया और बोला, “पार्वती! मैं
विजयी होकर लौटा हूं. मैंने जलंधर को हरा दिया है.” देवी पार्वती ने भगवान शिव को देखा और उन्हें लगा कि कुछ गङबङ है.
उन्होंने अपनी आँखें बंद कर लीं और अपनी शक्तियों से सब सच जान लिया.
जब देवी पार्वती ने
आँखें खोलीं तो वह बहुत क्रोधित दिखाई दीं. जलंधर जानता था कि वह देवी पार्वती के
क्रोध का वह सामना नहीं कर सकता. भगवान शिव के साथ उसकी लड़ाई के कारण वह पहले से
ही, अपने आप को कमजोर महसूस कर रहा था और वह वहाँ से भी भाग खङा हुआ.
देवी पार्वती बहुत
क्रोधित थीं. तभी भगवान विष्णु कैलाश पर आए. देवी पार्वती ने भगवान विष्णु को सब
वृतांत सुनाया और पूछा, “जलंधर इतनी शक्तिशाली कैसे हो गया?”. भगवान विष्णु ने कहा, “जलंधर पहले से ही शक्तिशाली
था. उसने अब वृंदा से शादी कर ली है. वृंदा मेरी अनन्य भक्त
है. जब भी जलंधर युद्ध में जाता है, वह मुझसे प्रार्थना करने लगती है. वृंदा की
प्रार्थनाओं के असर से जलंधर को बहुत सारी शक्तियाँ मिलती हैं. उसकी वजह से जलंधर
अजेय होता जा रहा है.”
देवी पार्वती ने
भगवान विष्णु को परेशान आंखों से देखा. उन्होंने भगवान विष्णु से इसका उपाय पूछा.
भगवान विष्णु उपाय जानते थे. उन्हें क्या करना है?, लेकिन क्या वह अपने भक्त के साथ ऐसा कर सकते हैं?.
भगवान विष्णु दुखी मन से वापस वैकुंठ चले गए. उन्हें पता था कि उनके पास वृंदा की
प्रार्थनाओं को रोकने के अलावा और कोई
चारा नहीं है.
अगली सुबह, जैसा
कि वृंदा को पता था कि उसका पति भगवान शिव के साथ अपनी लड़ाई शुरू करेगा. उसने
उसके कल्याण के लिए भगवान विष्णु कि प्रार्थना शुरू कर दी. जब वह गहन ध्यान में थी, तभी उसने महसूस किया कि कोई उसके कमरे में प्रवेश कर रहा है. उसने अपनी
आँखें खोलीं और अचानक! अपने सामने अपने पति को पा कर चौंक
गई. जलंधर के रूप में भगवान विष्णु ने सामने आते ही गर्व के साथ कहा, “मैंने भगवान शिव को हरा दिया है. अब मेरे जैसा और
कोई शक्तिशाली नहीं है.” वृंदा ये छल जान नहीं पायी. उसने
अपने अराद्ध्य को भोग लगाकर धन्यवाद दिया और अपनी प्रार्थना रोक दी. अब वह अपने
पति की जीत के जश्न की तैयारी करने लगी.
भगवान शिव और असली
जलंधर के बीच युद्ध के मैदान में उस समय घमासान युद्ध चल रहा था. दोनों एक दूसरे पर
भारी पङ रहे थे लेकिन जब भगवान शिव ने अपनी पूरी शक्ति के साथ त्रिशूल से सीधे,
जलंधर की छाती पर वार किया तब उसकी रक्षा के लिए उसकी पत्नी की प्रार्थना नहीं कर
रही थी. त्रिशूल सीधे उसकी छाती में धंस गया, जिससे जलंधर की मृत्यु हो गई.
जलंधर की मृत्यु के
साथ ही वृंदा को कुछ असहज महसूस होने लगा. उसे लगा कि उसके पति के साथ कुछ बुरा
घटित हुआ है. लेकिन यह क्या! उसका पति उसके सामने खड़ा था. यह कैसे संभव था.? उसने अपने सामने खङे अपने पति के
बहरूपिए की तरफ देखा और कहा, “तुम कौन हो? तुम मेरे पति नहीं हो .... वह कहां है?”, वृंदा ने
आँसुओं से भरकर कहा, “मैंने अपनी प्रार्थना रोक दी ... मेरे
पति ... मेरे पति..., उनको क्या हुआ ...?”
जलंधर वहाँ से
गायब हो गया और उसकी जगह भगवान विष्णु खड़े दिखाई दिए ... लेकिन वो दुखी आँखों और
उदास चेहरे के साथ वृंदा को देख रहे थे ...वृंदा ने भगवान विष्णु की ओर देखा और
चौंक! गई, “तुमने क्या किया है? मेरा
पति कैसा है ....?” भगवान
विष्णु धीरे से बोले, “जलंधर मर चुका है, वृंदा.” भगवान विष्णु ने वृंदा को कहा, “आपके पति, आपकी प्रार्थनाओं के कारण अजेय हो रहे थे, जब तक आप प्रार्थना कर रही थी, तब तक कोई भी उसे
हरा नहीं सकता था. आपकी प्रार्थनाओं को
रोकना आवश्यक हो गया था.”
वृंदा ने भगवान
विष्णु पर क्रोधित होते हुए कहा, “मैंने आप पर विश्वास किया और
आपने मुझे इस तरह निराश किया ... मैं पतिवृता नारी हूँ और आपने मेरा वृत भंग किया.
आप पत्थर की तरह खड़े रहे, जबकि मेरा पति युद्ध में मर रहा था ... इसके लिए
मैं तुम्हें श्राप देती हूं कि तुम एक पत्थर बन जाओगे.”
भगवान विष्णु ने
उदासीनता से अपना सिर हिलाया. “मैं आपके शाप को स्वीकार करता हूं, वृंदा ... लेकिन याद रखिए, जब आपका पति अहंकार पूर्ण व्यवहार कर रहा
था और दूसरों को आहत कर रहा था, अनुचित व्यवहार कर रहा था, अपने पति को रोकना भी आपका कर्तव्य था,.”
यह सब सुनते हुए
वृंदा ने भगवान विष्णु की ओर भयभीत आँखों से देखा और गहरे संताप के साथ नीचे भूमि
पर गिर गई. भूमि पर गिरते ही वृंदा ने अंतिम सांस ली और आंखें बंद कर लीं. ...
भगवान विष्णु अपनी महान भक्त की मृत्यु से बहुत आहत हुए और उसके मृत चेहरे को
देखते हुए उसके पास सिर झुकाकर बैठ गए...
भगवान शिव और
देवताओं ने आकर देखा कि भगवान विष्णु मृत वृंदा के पास बङी हृदयविदारक स्थिति में
बैठे विलाप कर रहे हैं. भगवान शिव ने भगवान विष्णु से कहा, “कृपया
उसके लिए शोक न करें. वह सदा आपकी अनन्य भक्त रहेगी और तुलसी के रूप में पुनर्जन्म
लेगी. तुलसी के पत्तों के बिना आपकी कोई भी पूजा या प्रार्थना कभी पूरी नहीं होगी."
जहां वृंदा की मृत्यु हुई थी, वहां तुलसी का एक पौधा उग आया. भगवान विष्णु ने तुलसी रूपी वृंदा से
कहा, ‘हे वृंदा। तुम
अपने सतीत्व के कारण मुझे लक्ष्मी से भी अधिक प्रिय हो गई हो. अब तुम तुलसी के रूप
में सदा मेरे साथ रहोगी. जो भी मनुष्य मेरे शालिग्राम रूप के साथ तुलसी का विवाह
करेगा उसे इस लोक और परलोक में विपुल यश प्राप्त होगा.’
जहां वृंदा की मृत्यु हुई थी, वहां तुलसी का एक पौधा उग आया. भगवान विष्णु ने तुलसी रूपी वृंदा से कहा, ‘हे वृंदा। तुम अपने सतीत्व के कारण मुझे लक्ष्मी से भी अधिक प्रिय हो गई हो. अब तुम तुलसी के रूप में सदा मेरे साथ रहोगी. जो भी मनुष्य मेरे शालिग्राम रूप के साथ तुलसी का विवाह करेगा उसे इस लोक और परलोक में विपुल यश प्राप्त होगा.’
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