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Ganeshji aur Andhi budhiya mai ki chaturai ki kahani/गणेशजी और अंधी बुढ़िया माई कि चतुराई.

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  गणेशजी और अंधी बुढ़िया माई की कहानी    व्रत के लिए कथा 👉   गणेशजी और   अंधी बुढ़िया माई कि चतुराई   की एक प्रचलित लोककथा , जो व्रत-त्योहारों के समय कही-सुनी जाती है. लोककथा होने के बावजूद बडी सजीव व सच्ची कहानी लगती है.     बहुत समय पहले की बात है , एक गाँव में एक बुढ़िया रहती थी. उसकी आँखों से लगभग न के बराबर दिखता था   .   अंधी बुढ़िया   के परिवार में वह खुद और साथ में बेटा-बहू रहते थे. टूटी-फूटी मिट्टी-गारे और फूस की झोपडी थी. घोर गरीबी के बीच , छोटे-मोटे काम करके , वे लोग किसी तरह से अपना गुजर-बसर करते थे.           अंधी बुढ़िया गणेशजी   की बहुत बडी भक्त थी , दिन-रात ईश्वर के ध्यान में लीन रहती थी. नित्य नियम से आरती , वंदना , अर्चना-पूजा करती और प्रत्येक गणेश चतुर्थी के दिन व्रत रखती , रात्रि में चंद्रमा को अर्ध देकर ही अन्न ग्रहण करती.  उसका सारा जीवन बस अपने इष्ट को भजने में ही बीता. वह हमेशा कहती रहती ,  “ गणपति की सेवा , मंगल मेवा ”.      गणेशजी अंधी बुढ़िया   की भक्ति से बहुत प्रसन्न हो गए और बुढ़ियामाँ को दर्शन देकर बोले , “ मैं तेरी भक्ति से बहुत प्रसन्न हूँ , तुम्हें

बाल गणेश और घमंडी चंद्रमा को श्राप की कथा

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बाल गणेश और घमंडी चंद्रमा की कथा      एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक दिन भगवान गणपति   का जन्मदिन था. जन्मदिन का अवसर था इसलिए बाल गणेश बेहद खुश थे. कैलाश पर्वत पर खूब धूमधाम हो रही थी. उसी दिन , धन के देवता कुबेर का आमंत्रण , शिव जी के पास आया. शिवजी कुबेर के मन की अवस्था जानते थे , वे जानते थे कि वह अपने ऐश्वर्य का दिखावा करना चाहता है. उन्होंने गणपति जी को   कुबेर के यहां दावत पर जाने के लिए कहा. अपने गणपति जी तो मिठाइयों के शौकीन है .    खुशी-खुशी तैयार हो गए, और पहुँच गए - कुबेर के यहाँ .      कुबेर ने दावत दी थी इसलिए इंतजाम भी बड़े पैमाने पर किया गया था. तरह-तरह के अलौकिक पकवान बनाए जा रहे थे. विशेष रूप से मिठाइयां बहुत ही लाजवाब थी. पूरे वातावरण में तरह-तरह के पकवानों की सौंधी-सौंधी, भीनी-भीनी महक तैर रही थी. विशेष रुप से गणपति जी के लिए मोदक बनाए जा रहे थे , उनमें मेवे, मिश्री भरे जा रहे थे.   लड्डूयों कि खुशबू से बाल गणपति जी के नथने फङकने लगे और मुंह में पानी आ गया.       कुबेर की दावत में उन्होंने भरपूर  पकवान  खाए. ढेर सारी मिठाइयां खाने के बाद भी, उनका मन नह

धनतेरस की कथा/STORY OF DHANTERRAS IN HINDI

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  धनतेरस की रोचक कथा     धनतेरस  ,  जिसे धन त्रयोदशी या धन्वंतरि त्रयोदशी के रूप में भी जाना जाता है ,  विक्रम संवत में कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष के तेरहवें चंद्र दिवस पर धनतेरस मनाया जाता है.   यह दीवाली के त्योहार का पहला दिन है. इस वर्ष 20 21 में    धनतेरस  मंगलवार , 2 नवंबर को है.             हिन्दू पुराणों के अनुसार , इस दिन भगवान धन्वंतरि का जन्म हुआ था.   धनतेरस पर भगवान धन्वंतरि की पूजा होती है। भगवान धन्वंतरि ,  समुद्र मंथन के दौरान   समुद्र से उत्पन्न हुए. उनके   एक हाथ में अमृत से भरा कलश था और दूसरे हाथ में आयुर्वेद का पवित्र ग्रंथ था.   वे आयुर्वेद के देवता हैं , जिन्होंने मानव जाति की भलाई के लिए संसार को आयुर्वेद का ज्ञान दिया और बीमारी के कष्ट से छुटकारा पाने में संसार की मदद की. धन्वंतरि को   देवताओं का वैद्य माना जाता है.         धनतेरस, एक कथा          एक प्राचीन किंवदंती के अनुसार   एक बार हेम नामक राजा की पत्नी ने जब एक पुत्र को जन्म दिया , तो ज्योतिषियों ने नक्षत्र गणना करके बताया कि यह बालक जब भी विवाह करेगा ,  उसके चार दिन बाद ही मर जाएगा. यह

शरद् पूर्णिमा का महत्व और गणपति की सुन्दर कथा/Importance & significance of sharad purnima 2020

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  शरद् पूर्णिमा के अवसर पर विशेष उपहार --- शरद् पूर्णिमा का महत्व    शरद् पूर्णिमा की रात चंद्रमा पृथ्वी के बहुत निकट दिखाई देता है. अपने बेहद खूबसूरत रूप में, अपने भक्तों पर अमृत की वर्षा करता है. धर्म ग्रंथों के अनुसार इस दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है और बङा मोहक लगता है. इस रात की सुंदरता को निहारने देवता भी धरती पर उतर आते हैं. इसे देवी लक्ष्मी का जन्मदिन माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन मां लक्ष्मी रात्रि में पृथ्वी पर भ्रमण करते हुए ,  अपने भक्तों को सुख समृद्धि का वरदान देती हैं.   अश्विन मास में शारदीय नवरात्र के बाद की पूर्णिमा को शरद् पूर्णिमा कहते हैं. इसे देव दीपावली ,   त्रिपुरारी पूर्णिमा ,   रास पूर्णिमा और कोजागिरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन चंद्रमा ,   महालक्ष्मी और विष्णु भगवान पूजा की जाती है. गंगा स्नान और दीप दान किया जाता है. लगभग सारे भारत के विभिन्न क्षेत्रों में, इसे विभिन्न रूप से मनाया जाता है.   शरद् पूर्णिमा की रात चंद्रमा अमृत की वर्षा करता है. इस अमृत को प्राप्त करने के लिए    लोग दूध और चावल के मिश्रण से खीर बनाते