धनतेरस की कथा/STORY OF DHANTERRAS IN HINDI

 

धनतेरस की रोचक कथा

    धनतेरस , जिसे धन त्रयोदशी या धन्वंतरि त्रयोदशी के रूप में भी जाना जाता हैविक्रम संवत में कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष के तेरहवें चंद्र दिवस पर धनतेरस मनाया जाता है. यह दीवाली के त्योहार का पहला दिन है. इस वर्ष 2021 में  धनतेरस मंगलवार, 2 नवंबर को है. 

 


 

     हिन्दू पुराणों के अनुसार, इस दिन भगवान धन्वंतरि का जन्म हुआ था. धनतेरस पर भगवान धन्वंतरि की पूजा होती है। भगवान धन्वंतरिसमुद्र मंथन के दौरान समुद्र से उत्पन्न हुए. उनके एक हाथ में अमृत से भरा कलश था और दूसरे हाथ में आयुर्वेद का पवित्र ग्रंथ था. वे आयुर्वेद के देवता हैं, जिन्होंने मानव जाति की भलाई के लिए संसार को आयुर्वेद का ज्ञान दिया और बीमारी के कष्ट से छुटकारा पाने में संसार की मदद की. धन्वंतरि को देवताओं का वैद्य माना जाता है.

 

     धनतेरस, एक कथा

 

 

    एक प्राचीन किंवदंती के अनुसार एक बार हेम नामक राजा की पत्नी ने जब एक पुत्र को जन्म दिया, तो ज्योतिषियों ने नक्षत्र गणना करके बताया कि यह बालक जब भी विवाह करेगाउसके चार दिन बाद ही मर जाएगा. यह जानकर उस राजा ने बालक को यमुना तट की एक गुफा में ब्रह्मचारी के रूप में रखकर बड़ा किया. इसी तरह सोलह वर्ष बीत गए.


 

      एक दिन जब महाराजा हंस की युवा बेटी यमुना तट पर घूम रही थी तो उस ब्रह्मचारी युवक ने मोहित होकर उससे गंधर्व विवाह कर लिया. जब राजकुमारी को  उसकी कुंडली में, उसकी शादी के चौथे दिन, सांप के काटने से उसकी मृत्यु की भविष्यवाणी का पता चला. तो पहले तो वह बहुत परेशान हुई. फिर उसने इस समस्या का हल निकलवाया और उस हल के अनुसार यदि वह सारी रात जागता रहेगा तो उसे सांप के रुप यमदूत काट नहीं पाएगा.

 

     उस चौथे दिन परउस राजकुमारी नव विवाहित पत्नी ने उसे ना सोने के लिए बाध्य किया. उसने शयनकक्ष के प्रवेश द्वार पर अपने सारे गहने और ढेर सारे सोने और चाँदी के सिक्के बिछा दिए. सारे भवन में ढेर सारे दीपक जला दिए. फिर उसने कहानियां सुनाना प्रारंभ कर दिया, जिससे राजकुमार को नींद न आए. उसने अपने पति को सोने से बचाने के लिए गीत गाने शुरु कर दिए. जब मृत्यु के देवता का यमदूतएक सर्प के रुप में राजकुमार के शयनकक्ष के दरवाजे पर पहुंचातो उसकी आँखें चौंधिया गईं. दीपकों के प्रकाश और आभूषणों की चमक से, वह लगभग अंधा हो गया.


      यमदूत राजकुमार के कक्ष में तब तक प्रवेश नहीं कर सकता था, जब तक वह सो न जाए. इसलिए वह सोने के सिक्कों के ढेर के ऊपर चढ़ गया और पूरी रात वहाँ बैठकर कहानियाँ और गीत सुनता रहा. इसी तरह सुबह हो गई और उसके काटने की, काल की घड़ी, टल चुकी थी. वह चुपचाप चला गया. इस प्रकारयुवा राजकुमार को उसकी नई दुल्हन ने, चतुराई से मौत के चंगुल से बचा लिया. वह दिन धनतेरस का था. तभी से यह दिन यमराज के प्रकोप से बचने के रूप में मनाया जाने लगा.

      धनतेरस पर सायंकाल को यम देवता के निमित्त  घर की दक्षिण दिशा में दीपक जला कर रखा जाता है. मान्यता है कि ऐसा करने से अकाल मृत्यु से सुरक्षा मिलती है और पूरा परिवार स्वस्थ रहता है.

 

  जल्दी मिलते हैं, दीपावली की अन्य कहानियों के साथ.....

 

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

गणेशजी और खीर की कहानी

Ganeshji aur Andhi budhiya mai ki chaturai ki kahani/गणेशजी और अंधी बुढ़िया माई कि चतुराई.

माँ पार्वती और उनका व्यक्तिगत गण/ Maa Parvati And Her Personal Gan [Bodygaurd], STORY IN HINDI