शरद् पूर्णिमा का महत्व और गणपति की सुन्दर कथा/Importance & significance of sharad purnima 2020
शरद् पूर्णिमा के अवसर पर विशेष उपहार ---
शरद् पूर्णिमा का महत्व
अश्विन मास में शारदीय नवरात्र के बाद की पूर्णिमा को शरद् पूर्णिमा कहते हैं. इसे देव दीपावली, त्रिपुरारी पूर्णिमा, रास पूर्णिमा और कोजागिरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन चंद्रमा, महालक्ष्मी और विष्णु भगवान पूजा की जाती है. गंगा स्नान और दीप दान किया जाता है. लगभग सारे भारत के विभिन्न क्षेत्रों में, इसे विभिन्न रूप से मनाया जाता है.
शरद् पूर्णिमा की रात चंद्रमा अमृत की वर्षा करता है. इस अमृत को प्राप्त करने के लिए लोग दूध और चावल के मिश्रण से खीर बनाते हैं और उसे चांद की किरणों में रात को रख देते हैं. अर्धरात्रि के उपरांत उसका भोग लगाकर, प्रसाद के रूप में वितरण करते हैं और मिलजुल कर खीर का आनन्द उठाते हैं. इस रात में तरह-तरह के कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं जैसे- कहीं भजन का कार्यक्रम होता है, कहीं कहानियां सुनाने का कार्यक्रम होता है, तो कहीं मिलजुल कर नाच-गाने का कार्यक्रम होता है. सब लोग रात की चांदनी में अपने आप को भरपूर भिगोने का भरसक प्रयास करते हैं.
शरद् पूर्णिमा कि रात में चांद से जो किरणें निकलती है, वे स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक होती है. आयुर्वेद के अनुसार इस रात में चांद की किरणें औषधीय गुणों से युक्त होती हैं, जो कई बीमारियों को ठीक करने में सक्षम होती हैं. इस रात को, कई प्रकार की औषधियों के गुणों में वृद्धि करने के लिए, उन्हें चंद्रमा की किरणों तले रखा जाता है.
शरद् पूर्णिमा विशेष अवसर पर अब कहानी प्रस्तुत है-
भगवान गणेश और चंद्रमा की कथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक दिन भगवान गणपति का जन्मदिन था. जन्मदिन का अवसर था इसलिए बाल गणेश बेहद खुश थे. कैलाश पर्वत पर खूब धूमधाम हो रही थी. उसी दिन, धन के देवता कुबेर का आमंत्रण, शिव जी के पास आया. शिवजी कुबेर के मन की अवस्था जानते थे, वे जानते थे कि वह अपने ऐश्वर्य का दिखावा करना चाहता है. उन्होंने गणपति जी को कुबेर के यहां दावत पर जाने के लिए कहा. अपने गणपति जी तो मिठाइयों के शौकीन है. खुशी-खुशी तैयार हो गए, और पहुँच गए - कुबेर के यहाँ.
कुबेर ने दावत दी थी इसलिए इंतजाम भी बड़े पैमाने पर किया गया था. तरह-तरह के अलौकिक पकवान बनाए जा रहे थे. विशेष रूप से मिठाइयां बहुत ही लाजवाब थी. पूरे वातावरण में तरह-तरह के पकवानों की सौंधी-सौंधी, भीनी-भीनी महक तैर रही थी. विशेष रुप से गणपति जी के लिए मोदक बनाए जा रहे थे, उनमें मेवे, मिश्री भरे जा रहे थे. लड्डूयों कि खुशबू से बाल गणपति जी के नथने फङकने लगे और मुंह में पानी आ गया.
कुबेर की दावत में उन्होंने भरपूर पकवान खाए. ढेर सारी मिठाइयां खाने के बाद भी, उनका मन नहीं भरा. उन्होंने सोचा कि कुछ मिठाई अपने बङे भाई कार्तिकेय के लिए और कुछ अपने लिए भी ले चलता हूं, जो कि बाद में खाऊंगा. इस तरह विचार करके उन्होंने ढेर सारी मिठाइयां एक पोटली में बांध लीं. उस पोटली को उन्होंने अपनी गोद में रखा और अपनी सवारी मूषक राज पर सवार हो गए. सवारी पर सवार होकर, वे रात में ही अपने घर, कैलाश पर्वत की ओर चल दिए.
रात का समय था, चारों तरफ चांदनी बिखरी हुई थी, शीतल वायु शरीर में सिहरन पैदा कर रही थी. अधिक पेट भरा होने के कारण, नींद के झोंके आने लगे. सुंदर वातावरण में, मजे से मूषक राज, धीरे-धीरे गणपति जी को लेकर, मस्त चाल से, उँगते-उँगते चले जा रहे थे. तभी अचानक ! फुस्स्स.... सामने से एक सर्पराज की फुफकार सुनाई दी. इससे चूहा डर गया ! और जोर से कूदा. गणपति जी का संतुलन बिगड़ गया और वे मिठाई सहित गिर पड़े. उन्होंने इधर-उधर, चारों तरफ देखा कि कोई देख तो नहीं रहा है ना ?. निर्जन रात्रि का समय था, वहां कोई नहीं था. हां ! इससे गणपति जी को सांत्वना मिली और उन्होंने मिठाई को एकत्रित करना शुरू किया. तभी उन्हें हंसी की आवाज सुनाई दी. उन्होंने इधर उधर देखा लेकिन कोई दिखाई नहीं दिया. हंसी को अपना भ्रम जानकर, उन्होंने मिठाई को पुनः इकट्ठा करना शुरू कर दिया.
उन्होंने मिठाई को अभी पूरा एकत्रित भी नहीं किया था कि उनकी नजर आसमान में हँसते हुए चांद की तरफ गई. आसमान में चांद हँसते हुए लोट-पोट हुआ जा रहा था. चांद उनके नाटे कद, मोटे पेट, गज के सिर, मूषक की सवारी और उस पर ढेर सारी मिठाइयों के बिखर जाने पर उनकी हँसी उड़ा रहा था. भक्तों को विघ्नहरता गणपति जी का जो रूप अति प्रिय है, उस पर चंद्रमा हँस रहा था.
इस पर गणपति जी को बड़ा गुस्सा आया और उन्होंने चांद को डांटते हुए कहा, "तुम्हें अपनी सुंदरता पर बहुत घमंड है. तुम मेरी मदद करने के स्थान पर मुझ पर हंस रहे हो." और उन्होंने क्रोध में आकर चंद्रमा को श्राप दे डाला कि धीरे-धीरे उसके शरीर शय होता जाएगा, उसकी सुंदरता समाप्त हो जाएगी और वह गगन में से भी लुप्त हो जाएगा.
गणपति जी के शाप देने के साथ ही चंद्रमा का धीरे-धीरे ह्रास होने लगा और कुछ समय पश्चात वह पूरी तरह से लुप्त हो गया. चारों ओर अंधकार फैल गया. अन्न, वनस्पति और औषधियां मुरझा गई. औषधियों के अभाव में मनुष्य विभिन्न बीमारियों से मरने लगे. संसार में चारों ओर हाहाकार मच गया. लोग मदद के लिये देवताओं को पुकारने लगे. लगता था जैसे संसार का अंत ही आ गया हो.
देवताओं ने अग्नि और इंद्र देव को चंद्रमा के पास भेजा. अग्नि और इंद्र देव ने चंद्रमा को समझाया कि वह गणपति जी से क्षमा याचना करें और संसार का उद्धार करें. चंद्रमा ने उनकी बात मान ली. गणपति जी को प्रसन्न करने के लिए वह ढेर सारे लड्डू और मालपूए लेकर उनके पास पहुंचा. अपनी भूल स्वीकार करने के बाद, चंद्रमा ने उन्हें मोदक का भोग लगाया. जिससे गणपति जी प्रसन्न हो गये और उन्होंने चंद्रमा को क्षमा कर दिया.
गणपति जी ने कहा, "मैंने तुम्हें क्षमा किया है, किंतु मैं अपना श्राप वापस नहीं ले सकता, केवल उसका प्रभाव कम कर सकता हूँ. एक माह अंतराल में तुम अपना प्रकाश धीरे-धीरे खो दोगे और फिर पुनः उस प्रकाश को धीरे-धीरे वापस प्राप्त कर लोगे--- यह प्रक्रिया निरंतर चलती रहेगी. और हां ! तुमने मेरा मजाक, मेरे जन्मदिन पर उड़ाया था इसलिए भाद्रपद चतुर्थी के दिन, तुम्हारा दर्शन करने वाले व्यक्ति को झूठा कलंक लगेगा."
चंद्रमा ने खुशी-खुशी सभी बातें स्वीकार कर ली. चारों तरफ प्रकाश ही प्रकाश फैल गया. तीनों लोक प्रसन्न हो गए. चंद्रमा ने प्रसन्न होकर अमृत बरसाना शुरू कर दिया. अन्न, वनस्पति और औषधियां फिर से खिल उठी. संसार में नवजीवन का संचार हुआ. सब लोग नाचने, गाने और उत्सव मनाने लगे.
कहानी सुनना, सुनाना बङा भला लगता है. अब आप बताए, इससे क्या शिक्षा मिली ?. मेरे अनुसार हमें अपने रुप, धन या ज्ञान का अहंकार करके किसी को भी अपने से कम नहीं समझना चाहिए और उसका उपहास नहीं उङाना चाहिए.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteVery nice story.... keep it up
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