AITAREYA BRAHMANA- A STORY FROM RIG-VEDA

पिता द्वारा उपेक्षित अपनी माता को, उसके अधिकार वापस दिलाने वाले, पुत्र की कथा...


     विजयनगर के एक विद्वान व्यक्ति थे, जिनका नाम महिदास था. उनकी माता का नाम इतरा था. इतर संस्कृत का एक शब्द है, इसका हिन्दी में अर्थ है - अन्य या अस्वीकृत. इतरा एक ऋषि कि अस्वीकृत पत्नी थी इसलिए उनका पुत्र ऐतरेय कहलाया. माँ कि पीङा को दूर करने के उद्देश्य से महिदास ने ऐतरेय ब्राह्मण कि रचना की. (aitareya meaning in English - unique). यह कथा ऋग्वेद से सम्बन्धित है.




ऐतरेय ब्राह्मण की कहानी

    मांडुकी नाम के एक ऋषि थे, उनकी कई पत्नियाँ थी. एक का नाम इतरा था. इतरा भगवान की परम भक्त थी तथा अत्यंत पवित्र जीवन व्यतीत करती थी.  इतरा ने पुत्र प्राप्ति की इच्छा से कठिन तपस्या की तथा भगवान ने उसकी तपस्या तथा प्रार्थना से प्रसन्न होकर, उसकी इच्छा को पूरा कर दिया. उसके घर में एक पुत्र का जन्म हुआ. जो अत्यंत सुंदर तथा आकर्षक था. उन्होंने बालक का नाम महिदास रखा. यद्यपि बचपन से ही बालक महिदास अलौकिक एवं चमत्कारपूर्ण घटनाओं का जनक था, लेकिन प्रायः चुप ही रहता था. आश्चर्य की बात तो यह थी, वह हमेशा आंखें बंद किये बैठा, ध्यान करता रहता. उसके चेहरे पर तेज बरसता तथा आंखों में तीव्र चमक थी.





    आठवें वर्ष में बालक का यज्ञोपवीत संस्कार कराया गया तथा पिता ने उसे वेद पढ़ाने का प्रयास किया. लेकिन उसने कुछ भी नहीं पढ़ा, बस चुपचाप बैठा  रहता. पिता हताश हो गए और उसे मूर्ख समझते हुए, उसकी ओर ध्यान देना बंद कर दिया. परिणाम स्वरूप उसकी माता की ओर से भी उन्होंने मुंह फेर लिया.


     मांडुकी ऋषि के दूसरी पत्नियों से भी अनेक पुत्र हुए थे. बड़े होकर वे सभी वेदों के तथा कर्मकांड के महान ज्ञाता हुए. चारों ओर उन्हीं का बोलबाला था, घर में भी उन्हीं की माताओं की पूछ होती थी. बेचारी पूर्व पत्नी, इतरा घर में उपेक्षित जीवन व्यतीत कर रही थी. उसके पुत्र महिदास को इसका बिलकुल ध्यान नहीं था. वह हर समय भगवान के ध्यान में मग्न रहता तथा एक मंदिर में पड़ा रहता.


    एक दिन माँ को अति क्षोभ हुआ. वह मंदिर में ही अपने पुत्र के पास पहुंची और उससे कहने लगी, "पुत्र! तुम्हारे होने से मुझे क्या लाभ हुआ ? तुम्हें तो कोई पूछता नहीं है, मुझे भी सभी घृणा की दृष्टि से देखते है. बताओ ऐसे जीवन से क्या लाभ है.?" माता की ऐसी दुखपूर्ण बाते सुनकर महिदास का कुछ ध्यान भंग हुआ, वह बोला, "माँ ! तुम तो संसार में आसक्त हो जबकि यह संसार और इसके भोग सब नाशवान है, केवल भगवान का नाम ही सत्य है. मैं उसी का जाप करता हूं, लेकिन अब मैं समझ गया हूं कि मेरा अपनी माँ के प्रति भी कुछ कर्तव्य है. मैं उसको अब पूरा करूंगा और तुम्हें ऐसे स्थान पर पदासीन करूंगा, जहां अनेक जीवन में पुण्य करके भी नहीं पहुंचा जा सकता है."


    महिदास ऐतरेय ने भगवान विष्णु की सच्चे हृदय से, वेदों की विधियों के अनुसार, स्तुति की. इससे भगवान विष्णु प्रसन्न हो गए. उन्होंने साक्षात प्रकट होकर महिदास ऐतरेय और उसकी माता को आशीर्वाद दिया,पुत्र ! यद्यपि तुमने वेदों का अध्ययन नहीं किया है. लेकिन मेरी कृपा से तुम सभी वेदों के ज्ञाता और प्रकांड पंडित हो जाओगे. तुम वेद के एक अज्ञात भाग की भी खोज करोगे. वह तुम्हारे नाम से ऐतरेय ब्राह्मण कहलायेगा. विवाह करो, गृहस्थी बसाओ तथा सभी कर्म करो. लेकिन उनमें आसक्त मत होना. अर्थात् सभी कर्मों को मुझे समर्पित कर देना, तब तुम संसार में नहीं फंसोगे. एक स्थान जो कोटितीर्थ कहलाता है, वहां जाओ. वहां पर हरिमेधा यज्ञ कर रहे है. तुम्हारे जैसे विद्वान की वहां आवश्यकता है. वहां जाने पर, तुम्हारी माता की सभी इच्छाएं पूरी हो जाऐगीं." इतना कहकर भगवान विष्णु अंतर्धान हो गए.


     माँ को अपने पुत्र के पुण्यों के कारण, भगवान विष्णु के साक्षात दर्शन हुए.  माता का हृदय अपने पुत्र के प्रति ममता और श्रद्धा से ओतप्रोत हो गया. अब दोनों माता-पुत्र भगवान की आज्ञा का पालन करते हुए, हरिमेधा के यज्ञ में पहुंच गए. वहां महिदासा ऐतरेय ने भगवान विष्णु से संबंधित प्रार्थना का गान किया. उसे सुनकर तथा उसके तेज और विद्वत्ता से सभी उपस्थित विद्वान प्रभावित हो गए. महिदासा ऐतरेय ने यहीं पर वेद के नवीन चालीस अध्यायों का पाठ किया. ये पाठ तब तक पूरी तरह अज्ञात थे. बाद में ये पाठ ऐतरेय ब्राह्मण के नाम से विख्यात हुए.

     हरिमेधा ने महिदासा ऐतरेय को ऊंचे आसन पर बैठाकर उसका परिचय प्राप्त किया. परिचय प्राप्त करने के बाद हरिमेधा ने महिदासा से अपनी पुत्री का विवाह कर दिया. महिदासा की माता ने अपने पुत्र से जो भी कामना की थी, वह उसे प्राप्त हो गई थी. भगवान विष्णु की कृपा से महिदासा ऐतरेय का नाम महर्षि ऐतरेय के रूप में सदा-सदा के लिए अमर हो गया.


    

ऐतरेय ब्राह्मण का एक अंश


ऐतरेय ब्राह्मण का परिचय

वेद चार हैं-
1.     ऋग्वेद
2.     यजुर्वेद
3.     सामवेद
4.     अथर्ववेद

    प्रत्येक वेद को दो भागों में बांटा गया है, संहिता और ब्राह्मण. ब्राह्मण के तीन उप भाग हुए ब्राह्मण, आरण्यक तथा उपनिषद. ब्राह्मण ग्रन्थ मनुष्यों के नित्य प्रति के कर्मकाण्ड से सम्बंधित है. इन्हीं में एक ऐतरेय ब्राह्मण कहलाता है.


महिमाकृती
महिमाकृति


    ऐतरेय ब्राह्मण पवित्र स्तोत्रों का संग्रह है जो कि ऋग्वेद कि एक शाखा है. इसका रचना काल 1000 ईसा पूर्व से 500 ईसा पूर्व का माना जाता है.. इसके रचनाकार विजयनगर के एक विद्वान व्यक्ति थे, जिनका नाम महिदास था. उनकी माँ का नाम इतरा था इसलिए वो ऐतरेय कहलाए. ऐतरेय ब्राह्मण मूल रूप से संस्कृत में है लेकिन अनेक भाषाओं में इसका अनुवाद और भाष्य हुआ है. ऐतरेय ब्राह्मण और ऐतरेय उपनिषद दो भिन्न ग्रंथ हैं.
  


    आशा है वेदों से सम्बंधित यह कथा आपको पसंद आएगी. जल्दी ही मिलते हैं, एक नई कहानी के साथ...



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