शिव-पार्वती और नन्दी की कथा



शिव-पार्वती और नन्दी


एक बार पार्वतीजी ने शिवजी से पूछा, “मृत्युलोक पृथ्वी पर मनुष्य इतने दुखी क्यों हैं?”. जगत जननी अपनी संतानों को निरंतर दुख और क्लेश में घिरा देख कर द्रवित थीं. इसपर शंकर भगवान बोले, “प्रिये!, मनुष्य के दुख का सबसे बङा  कारण, उसकी परनिंदा करने कि आदत है. प्रत्येक व्यक्ति दूसरे में कमियाँ ही कमियाँ देखता है. उसे सामने वाला व्यक्ति हर परिस्थिति में गलत ही लगता है. भगवत भजन के स्थान पर परनिन्दा में ही लीन रहता है और अपने आप को महान और निष्पाप सिद्ध करने में लगा रहता है.”, इस बात को सुनकर  पार्वतीजी कुछ बोली तो नहीं, पर सहमत भी नहीं हुईं. भोलेनाथ उनकी शंका को समझ गए.




    
         “बहुत दिन हो गये हैं, कहीं घूमने गए हुए, चलो पृथ्वी पर घूम कर आते हैं. शंकर भगवान ने देवी का मन बहलाने के लिए कहा. इस प्रस्ताव से पार्वतीजी बहुत प्रसन्न हुईं और तुरंत तैयार हो गयीं. पति के साथ घूमने जाने का अवसर था इसलिए उन्होंने सुन्दर-सुन्दर वस्त्र पहने, खूब श्रंगार किया और लावण्यमयी तरुणी के रूप में शिवजी के समीप आईं. पर ये क्या?, शंकर भगवान जैसे थे, जहाँ थे, वहीं वैसे ही बैठे हुए थे. पार्वतीजी थोड़ा नाराज़ होकर बोलीं, क्यों क्या चलना नहीं है? आप अभी तक तैयार नहीं हुए. भगवान शंकर पत्नी का मनमोहक रुप देखकर प्रसन्नता से उन्हें निहारते हुए बोले, मैं तो आज एक वृद्ध के रुप में पृथ्वी पर घूमने जाऊँगा”. ये बात पार्वतीजी को पसंद तो नहीं आयी पर  पति के साथ घूमने जाने के उत्साह में उन्होंने कोई बहस भी नहीं की और शिवजी की सवारी नन्दी बैल को चलने का आदेश दे दिया.

        शिव-पार्वती और नन्दी पृथ्वी पर  एक वृद्ध पुरुष, तरुणी सुन्दर स्त्री और बैल कि सवारी के रुप में विचरण करने लगे. जब वे सब पहले गाँव के समीप पहुँचे तो कुछ लोगों कि नजर उन पर पड़ी. वे लोग उन्हें देखकर हँसने लगे. एक व्यक्ति दूसरे से बोला, वाह क्या जोड़ी है?”. दूसरा आगे बङकर बोला, और उसपर से अक्ल तो देखो, सवारी साथ में है, फिर भी दोनों पैदल चल रहें हैं. इस तरह से कई प्रकार से उपहास करते हुए, उन्होंने इन तीनों का आगे बङना, लगभग मुश्किल कर दिया और उनका मज़ाक उड़ाते हुए झुंड बनाकर उनके पीछे-पीछे चलने लगे. उस झुंड ने अगले गाँव तक उनका पीछा किया.

     अगले गाँव में प्रवेश करने से पहले पार्वतीजी ने शिवजी से कहा, “लोग मज़ाक उड़ा रहें है, ऐसा करते हैं, आप नन्दी पर बैठ जाइए, मैं पैदल आपके साथ चलती हूँ”. जैसी तुम्हारी इच्छा कल्याणी!”, मंद-मंद मुस्कुराते हुए भोलेशंकर अपनी भारी भरकम देही के साथ किसी तरह नंदी पर विराजमान हुए.  पर ये क्या?, पिछले गाँव जैसा ही स्वागत इस  गाँव में भी उनका हुआ. लोग तरह- तरह के ताने वृद्ध के रुप में भोले बाबा को देने लगे. आपस में लोग बातें बनाने लगे. कैसा बुढ्ढा है?”, कोमल-सुकुमार स्त्री पैदल चल रही है और आप आराम से सवारी कर रहा है.”, कलियुग है, भाई कलियुग.”. मनचलों ने तो देवी का चलना ही दूभर कर दिया. किसी तरह भीङ से बचते-बचाते ये तीनों गिरते- पङते गाँव के बहार पहुँचे.

     अब की बारी देवी कि थी, सवारी करने की. पार्वतीजी तरुण स्त्री के रुप में बैल पर जा बैठीं और वृद्ध पति के रुप में भोले बाबा साथ-साथ चलने लगे. अगले गाँव के कूए पर स्त्रियाँ पानी भर रहीं थीं. उन्होंने जब इस विचित्र जोङी को देखा तो तरह-तरह के मुँह बनाकर, इनकी तरफ इशारे करते हुए, हँसने लगीं. तरह-तरह के उलाहने देने लगीं. तरुण स्त्री की ओर उँगली करते हुए एक ने कहा, अरी!, तुझे लाज नहीं आती, बूढा पति पैदल चल रहा है और तू रानी बनी सवारी कर रही है. दूसरी ने बात आगे बढाते हुए कहा, आजकल कि बहू-बेटियाँ, तो सारी लाज-शरम घोल कर पी गई हैं.”, तीसरी ने अपने जमाने के गुण-गान अलापने शुरु कर दिये. इन सब कि बकबक-झकझक की परवाह न करते हुए, ये तीनों आगे बढ़ते रहे. माँ अपनी संतानों के व्यवहार से बहुत लज्जित महसूस कर रहीं थीं, पर अब भी अपनी हार मानने को तैयार नहीं थी.

      अंतर्यामी भगवन सब कुछ जानते हुए अनजान बनने का नाटक करते हुए बोले, प्रिये! ऐसा करतें हैं कि मैं नन्दी को अपने कंधे पर उठा लेता हूँ. तब किसी को कुछ बोलने का अवसर नहीं मिलेगा. पार्वतीजी कुछ जवाब देतीं’, इससे पहले ही, शिवजी ने नन्दी को अपने कंधों पर उठा लिया और चलने लगे. संतानों के व्यवहार से पहले से ही दुखी देवी, पति के कष्ट से और भी अधिक लज्जित महसूस करने लगीं. लेकिन ये क्या?, वे अगले गाँव के पास से गुजरे, तो उस गाँव के वासियों ने तो जैसे सारी मरियादायें ही तोङ दीं. लोग अनाप-शनाप बोलते हुए, उछल कूद मचाते हुए, उन्हें परेशान करने लगे. अपशब्दों और भीङ का उपद्रव अपनी चरम सीमा पर था. इस सब को झेलते हुए किसी तरह वो अपने को बचाते हुए गाँव की सीमा से बहार आए.

     भोले बाबा हँसते हुए बोले, कहो, कल्याणी!, अब तुम्हारा क्या कहना है?”, अपने देवता के सामने, अपनी अभद्र संतान के क्रियाकलापों से, देवी बहुत शर्मिंदा महसूस कर रहीं थीं. खिसियाकर मुसकराते हुए उन्होंने कहा, आप ही सही हैं, भगवन!, मनुष्य अपने कर्मों कि वजह से ही दुखी है और नरक जैसा जीवन जीने को मजबूर है.

          अब कभी भी परनिन्दा या किसी का उपहास उङाने से पहले रुकें... जरा सोचें...?... कहीं सामने वाले के रुप में, हमारे आराध्य, हमारी परीक्षा लेने के लिए तो नहीं खङे हैं.  


    

Comments

  1. Kabhi kisi ki ninda nhi karni chahiye par humare vichar ab ninda se hi bhar gye... Ma koshish karugi apne vicharo ma parivartan ki.. Thanku

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