पत्नी का भय -A HINDI STORY FROM SHREE PURAN

पत्नी का भय


क्या आप अपनी पत्नी से डरते हैं ? इस बात पर झिझकने या शरमाने कि कोई आवश्यकता नहीं है. ऐसा तो पौराणिक काल से होता आया है. क्या आपको विश्वास नहीं हो रहा है ? तो लीजिए... प्रस्तुत है श्री पुराण से एक रोचक कथा...


 

    सदा सर्वदा से संसार में स्त्री के वशीभूत जो-जो लोग हैं और जो-जो लोग पहले हो चुके हैं, उन सब में सर्वश्रेष्ठ है- शैव्या का पति राजा ज्यामघ. राजा ज्यामघ एक शक्तिशाली राज्य का प्रभुता संपन्न राजा था. राज्य में उसका बहुत  सम्मान और दबदबा था. उसके बाहुबल और चतुर राजनीति के सब कायल थे. प्रभु कि भरपूर कृपा थी उसपर, पर अहो भाग्य! कोई संतान नहीं थी.

 

    यूं तो राजा ज्यामघ का विवाह सही समय पर राजकुमारी शैव्या से हो गया था परन्तु काफी समय बीत जाने पर भी उन्हें संतान सुख प्राप्त नहीं हुआ था. वैद- हकीम, दबा-दारू, दुआ-प्रार्थना, झाङ-फूंक सब बेअसर साबित हो चुके थे. राजा ज्यामघ को संतान की अति इच्छा थी पर शैव्या से वह बहुत डरता था. बहुत बार संतान की इच्छा के कारण, दूसरा विवाह करने की सोची पर शैव्या के भय के कारण यह इच्छा, मन की मन में ही रह गई.

 

   मन को दूसरी तरफ लगाने के लिए उसने अपना पूरा ध्यान और शक्ति युद्ध कौशल प्राप्त करने में लगा दिया. अभ्यास करते-करते उसकी सेना बहुत शक्तिशाली हो गई. अचानक एक दिन शत्रु राजा ने उसके राज्य पर हमला कर दिया. राजा ज्यामघ तो पूरी तरह से तैयार था. शत्रु ने उसे आंकने में गलती कर दी थी. बस फिर क्या था, बहुत से रथ, घोड़े, हाथियों और अपने पूरे संगठन दलबल के साथ वह युद्ध के मैदान में कूद गया. भयानक महायुद्ध प्रारंभ हो गया.

 

    चारों ओर सैनिक एक दूसरे के साथ भीङने लगे. लोहे से लोहा टकराने लगा. टन-टन-टना-टन की कर्कश ध्वनि से कान के परदे फटने लगे. जिधर भी प्रहार होता, उधर ही रक्त की नदी सी बहने लगती. कटे अंगों और मृत देहों से धरती पटने लगी. चीख-पुकारों, दर्द की कराहटों, मारो-काटो की ध्वनियों से दिशाएँ गूंजने लगी. इसी बीच ज्यामघ का हाथी अपना संतुलन खो बैठा और राजा ज्यामघ शत्रु खेमे के बीचों-बीच अपने हाथी से नीचे गिर गया. चारों ओर से एकसाथ उसपर प्रहार होने लगे किन्तु राजा ज्यामघ ने बिना विचलित हुए, चारों ओर से होने वाले शत्रु के प्रहारों को, देखते ही देखते निष्फल कर दिया. तभी उचित समय उसे अपने सैनिकों से सहायता भी मिल गई और घमासान युद्ध होने लगा. आगे और आगे बढ़ते हुए वे शत्रु के महल तक पहुँच गए. शत्रुपक्ष इसके लिए तैयार नहीं था, वहाँ भगदङ मच गई. जिसे जहाँ जगह मिली, वह उसी ओर दौङ लिया. वे समस्त शत्रुगण पुत्र, मित्र, स्त्री और धन को अपने-अपने स्थान पर छोङकर दिशा-विदिशाओं में भाग गए.

     जैसे ही ज्यामघ ने शत्रु खेमे को पार करके, उसके महल में प्रवेश किया, सामने क्या देखता है एक अत्यन्त रुपवती राजकन्या. दास-दासियों और रक्षकों के भाग जानें पर भय से कातर हुई विशाल आँखों से ज्यामघ को देखकर न जाने क्यों, कुछ राहत महसूस करती है. राजा ज्यामघ भी उसे देखते ही अनुरक्त-चित्त हो गया. राजा ने सोचा, यह अच्छा ही हुआ, विधाता ने ही इसे यहाँ भेजा है. मैं सन्तानहीन और बन्ध्या का पति हूँ, सन्तान प्राप्ति हेतु मुझे इससे विवाह कर लेना चाहिए. ऐसा विचार करके उसने जीते हुए राज्य को, उसके पिता को सम्मानपूर्वक  वापस लौटा दिया और उनसे विवाह की आज्ञा माँगी, जो उसे अविलम्ब प्राप्त हो गई. ज्यामघ यह विवाह शैव्या की आज्ञा लेकर ही करना चाहता था इसलिए राजकुमारी को अपने रथ पर, अपने साथ बैठाकर, अपनी राजधानी की ओर चल दिया.

    राजधानी के द्वार पर विजयी राजा के दर्शन के लिए सभी खास-आम लोग भारी संख्या में एकत्रित हो गए. सेवकों, कुटुम्बीजनों और मंत्रिगणों के साथ महारानी शैव्या भी ठाठबाट के साथ द्वार पर उपस्थित थी. जयकारों और मंगलध्वनी के शोर-शराबे के साथ रथ द्वार पर था. राजा ज्यामघ अपने रथ के आसन पर गर्व के साथ सुशोभित थे पर ये क्या उनके वाम भाग में ये सुन्दरी कौन है. अब सबका ध्यान राजा से हटकर राजकुमारी की तरफ ज्यादा था. चारों तरफ खुसर-पुसर होने लगी. यह देखकर शैव्या को गहरी ठेस लगी. उसकी ऐसी अवमानना आज तक कभी नहीं हुई थी. आज सारे समाज के सामने, उसने अपने आप को इस दशा में पाया तो वह क्रोध से लाल हो गई. उसकी भाव भंगिमा को देखकर, राजा की भी सिट्टीपिट्टी गुल हो गई.

   शैव्या ने ज्यामघ की ओर देखकर क्रोध के कारण काँपते हुए होंठों से कहा, हे अति चपलचित्त! तुमने रथ में यह किसको बैठा रखा है?” राजा को कोई उत्तर नहीं सूझा, डरते-डरते उसके मुंह से निकल गया...यह मेरी पुत्र वधू है. तब शैव्या बोली, मेरे तो कोई पुत्र हुआ नहीं है और आपके दूसरी कोई स्त्री भी नहीं है, फिर किस पुत्र के कारण, आपका इससे पुत्र वधू का सम्बन्ध हुआ. पत्नी से भय के कारण विवेकहीन असंबद्ध बात को आगे बनाते हुए राजा ने कहा, तुम्हारे जो पुत्र होने वाला है, उस भावी शिशु की मैंने यह पहले से ही भार्या निश्चित कर दी है. यह सुनते ही शैव्या ने मुस्काते हुए कहा, अच्छा, ऐसा ही हो. और राजा के साथ सबने नगर में प्रवेश किया.

    पुत्र जन्म विषयक यह वार्तालाप ऐसे विशुद्ध लग्न में हुआ कि समय के प्रभाव से थोड़े ही दिनों शैव्या के गर्भ रह गया और यथासमय एक पुत्र उत्पन्न हुआ. पिता ने उसका नाम विदर्भ रखा और समय आने पर इस पुत्रवधू के साथ उसका पाणिग्रहण हुआ.

 

 जल्दी ही मिलते हैं एक नई कहानी के साथ---

 

 

 

 

 

 

   


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