DIWALI/DIPAVALI - FESTIVAL OF LIGHTS IN INDIA - STORY IN HINDI
दीपावली
की कहानी
यह एक लोक परंपरा पर आधारित रोचक कथा है...
एक साहूकार की
एक बेटी थी. वह रोजाना पीपल के पेड़ में पानी डालने जाती थी. पीपल के पेड़ पर
लक्ष्मी जी का वास था. एक दिन लक्ष्मी जी ने प्रकट होकर उससे कहा, “तू मेरी सहेली बन जा.”
वह लड़की माता
पिता की आज्ञाकारी थी. उसने कहा, “यदि मेरे मेरे माता पिता
आज्ञा दे देंगे तो मैं आपकी सहेली बन जाऊंगी.” उसने अपने माता पिता से
आज्ञा मांगी, जो उन्होंने सहर्ष उसे दे दी. इस प्रकार दोनों सहेली बन गई.
एक दिन लक्ष्मी
जी ने उसे खाना खाने के लिए निमंत्रण दिया. जो उसने सहर्ष स्वीकार कर लिया. माता
पिता की आज्ञा लेकर, वह लक्ष्मी जी के यहाँ जीमने के लिए चली गई.
लक्ष्मी जी ने
उसे सोने से बनी चौकी पर बैठाया. सोने की थाली, कटोरियों और रत्न जड़ित बर्तनों में
छत्तीस प्रकार के व्यंजन परोस कर खाना खिलाया. उसे खाने के बाद शाल, दुशाला,
बहुमूल्य कपड़े, सोने-चांदी के सिक्के भेंट में दिए. जब वह अपने घर के लिए रवाना होने लगी तो उसने भी लक्ष्मी जी ने कहा, आप भी मेरे घर जीमने आओ. लक्ष्मी जी ने कहा, “ठीक है, जरूर आऊंगी.”
घर आने के बाद
वह उदास होकर कुछ सोच में पड़ गई. पिता ने पूछा सहेली के यहाँ जीम कर
आई, तो उदास क्यों हो ? उसने अपने पिता को कहा, “लक्ष्मी जी ने मुझे बहुत कुछ दिया, अब वो हमारे यहाँ आएगी तो मैं उन्हें कैसे जिमाऊंगी, अपने
घर में तो कुछ भी नहीं है.”
पिता ने उसे समझाया और कहा, “तू चिंता मत कर. बस तुम घर की साफ सफाई अच्छे से करके, लक्ष्मी जी के सामने एक चौमुखी दीया जला कर रख देना. सब ठीक हो
जाएगा.”
वह दीया लेकर
बैठी ही थी कि तभी! एक चील रानी का नौलखा हार पंजे में
दबाकर उड़ती हुई जा रही थी. उसके पंजे से वह हार छूटकर, लड़की के पास आकर गिरा. लड़की हार को देख कर चकित रह गई. उसने अपने पिता को वह हार दिखाया. दोनों के मन
विचार आया कि इसे बेचकर लक्ष्मी जी के स्वागत का प्रबंध हो सकता है.
बाहर राजा की मुनादी
हो रही थी. डम-डम, डम-डम… “एक चील रानी का नौलखा हार उड़ा कर ले गई है. किसी को
मिले तो लौटा दे.” साहूकार और उसकी बेटी ने मन के
विचार पर नियंत्रण किया. अच्छे संस्कारों की वजह से पिता ने लड़की को कहा यह हार हम
रानी को लौटा देंगे. लक्ष्मी जी के स्वागत के लिए धन तो नहीं पर हम पूरा मान
सम्मान देंगे.
साहूकार और
उसकी बेटी ने हार राजा को लौटा दिया. हार देखकर राजा ने खुश होकर उनसे कहा, “जो चाहो मांग लो.” साहूकार ने राजा से कहा, “मेरी बेटी की सहेली के स्वागत के लिए शाल
दुशाला, सोने
की चौकी, सोने
की थाली कटोरी और छत्तीस प्रकार के व्यंजन की व्यवस्था करवा दीजिये.” राजा ने कहे अनुसार से भी ज्यादा, तुरंत ऐसी व्यवस्था करवा दी.
लड़की ने गणेश
और लक्ष्मी जी दोनों को बुलाया था. लक्ष्मी जी को सोने की चौकी पर बैठने को कहा.
लक्ष्मी जी ने कहा, “मैं तो किसी राजा महाराजा
की चौकी पर भी नहीं बैठती.” लड़की ने कहा, “मुझे सहेली बनाया है तो मेरे यहाँ
तो बैठना पड़ेगा.”
गणेश और
लक्ष्मी जी दोनों चौकी पर बैठ गए. लड़की ने बहुत आदर सत्कार के साथ और प्रेम पूर्वक
भोजन करवाया. लक्ष्मी जी बड़ी प्रसन्न हुई. लक्ष्मी जी ने जब विदा मांगी तो लड़की ने
कहा, “अभी रुको, मैं लौट कर आऊं तब जाना और घर के बाहर चली गई.”
लक्ष्मी जी
चौकी पर बैठी इंतजार करती रही. लक्ष्मी जी के वहाँ होने से घर में धन धान्य का
भंडार भर गया. इस प्रकार साहूकार और उसकी बेटी बहुत धनवान हो गए और उनके घर में
हमेशा के लिए, लक्ष्मी जी का वास हो गया.
कहानी के अंत में वही, मैं आज भी यही शुभकामनाएं दे रही हूँ.
“कहते को, सुनते को, हुँकारे भरते को, जैसी कृपा लक्ष्मी जी ने साहूकार और उसकी बेटी पर की, वैसी कृपा, हम सब पर करना, हम सब पर करना...”
मिलते हैं एक और कहानी के साथ....
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