Choti Diwali, Narak Chaturdashi, Narak Nivaran Chaturdashi, Roop Chaturdashi ki katha IN HINDI


छोटी दीवाली की कथाएं


    कार्तिक मास में दीवाली का पर्व पाँच दिनों के त्योहारों की श्रृंखला रूप में मनाया जाता है. इस श्रृंखला में धनतेरस के बाद दूसरा दिन छोटी दीवाली या नरक चतुर्दशी का होता है, इसे नरक निवारण चतुर्दशी, रूप चतुर्दशी, काली चौदस आदि के रूप में भी जाना जाता है .वहीं कहीं- कहीं इसे हनुमान जी के जन्मदिन के रूप में भी मनाया जाता है. 



पहली कथा

नरक चतुर्दशी की कथा...

.    ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा और मां काली की कृपा से नरकासुर नाम के राक्षस का वध किया और संसार को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई.



   राक्षस हिरण्याक्ष और भूदेवी के अचानक संस्पर्श से नरकासुर राक्षस का जन्म हुआ. उसके जन्म के समय, भगवान विष्णु ने भूदेवी से कहा, “भूमिदेवी! , नरकासुर जो यह तुम्हारा पुत्र है. वह हिरण्याक्ष की तरह ही बहुत शक्तिशाली बनेगा.

    भुमादेवी, ने भगवान विष्णु को देखा और आशंकित होकर पूछा, “क्या वह भी हिरण्याक्ष की तरह एक भयानक दानव होगा?”भगवान विष्णु ने अपना सिर हिला दिया और दुख के साथ कहा, वह हिरण्याक्ष की तरह हो सकता है. वास्तव में वह हिरण्याक्ष से भी अधिक शक्तिशाली हो सकता है.

    समय के साथ बङा होकर वह बहुत शक्तिशाली हो गया. उसने कठोर तपस्या करके भगवान ब्रह्मा से अमरता का वरदान, इस शर्त पर पा लिया कि उसकी मृत्यु केवल उसकी मां के द्वारा हो सकती है. ब्रह्माजी ने उसे अमरता का वरदान देते हुए समझाया कि वह अपनी शक्तियों का उपयोग अच्छे कामों के लिए करे.

     अमरता का वरदान पाकर वह अपने राज्य में लौट आया और पहले से भी ज्यादा दुष्ट हो गया. उसने पृथ्वी पर सभी राज्यों को अपने नियंत्रण में ले लिया. इसके बाद, उसने अपनी आँखें स्वर्ग लोक की ओर मोड़ लीं। यहाँ तक कि पराक्रमी इंद्र भी इस के हमले का सामना नहीं कर सके और उन्हें स्वर्ग से भागना पड़ा.

    नरकासुर स्वर्ग और पृथ्वी दोनों का अधिपति बन गया था। सत्ता के नशे में, उसने स्वर्ग की मातृ देवी अदिति की बालियां चुरा लीं और 16000 महिलाओं का अपहरण कर, उन्हें अपने महल में कैद कर, यातनायें देने लगा. सब तरफ हाहाकार मच गया.

    इंद्र के नेतृत्व में सभी देवता, विष्णुजी के पास गए और उन्हें नरकासुर से मुक्ति दिलाने के लिए कहा. विष्णुजी ने उन्हें आश्वस्त किया और व्दापर युग अवतार लेकर नरकासुर के वध करने का वादा किया. इस प्रकार नरकासुर की कहानी कृष्ण और उनकी तीसरी पत्नी सत्यभामा के साथ आगे चलती है.



    स्वर्ग की मातृ देवी अदिति  ने मदद के लिए सत्यभामा से संपर्क किया। जब सत्यभामा ने नरकासुर का महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार और अदिति के साथ उनके व्यवहार के बारे में सुना, तो वह क्रोधित हो गई. सत्यभामा ने नरकासुर के खिलाफ युद्ध छेड़ने की ठान ली. युद्ध के लिए भगवान कृष्ण अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ गरुड़ पर सवार हो गए. जैसा कि देवों और अदिति से वादा किया गया था, कृष्ण ने नरकासुर के दुर्गम किले पर हमला किया. दोनों ओर से भीषण युद्ध हुआ. अंत में सत्यभामा (भूदेवी का अवतार, नरकासुर की मां) द्वारा नरकासुर का वध हुआ.

    नरकासुर की मृत्यु से पहले, उसने अपनी माँ, सत्यभामा से एक वरदान मांगा, कि उसकी मृत्यु का जश्न रंगीन रोशनी से मनाया जाना चाहिए. आखिर!, सत्यभामा उसकी मां थी, कैसे इनकार करती. इस प्रकार इस दिन को नरका चतुर्दशीके रूप में मनाया जाता है, दीवाली से एक दिन पहले.



    कृष्ण और सत्यभामा ने जीत के बाद सभी कैदियों को स्वतंत्र किया और अदिति के कुंडल सम्मान के साथ उन्हें लौटाए. यह है कथा नरक चतुर्दशी की.



एक अन्य कथा...

नरक निवारण चतुर्दशी की कथा


     एक और प्रचलित कथा के अनुसार रंति देव नाम से एक धर्मात्मा राजा थे. उन्होंने कभी कोई पाप नहीं किया. लेकिन फिर भी मृत्यु के दौरान यमदूत आए और उन्हें नरक लोक ले जाने लगे. यह सब देखकर राजा बोले, मैंने कभी कोई पाप नहीं किया, फिर भी आप  मुझे क्यों नरक ले जाना चाहते हैं?. यह बात सुन यमदूत ने जवाब दिया कि हे राजन! एक बार आपके द्वार से एक ब्राह्मण भूखा लौट गया था, यह उसी पाप कर्म का फल है.” 




    इस बात को सुन राजा ने यमदूत से एक वर्ष का समय मांगा और ज्ञानीजनों के पास अपनी इस समस्या को लेकर पहुंचे. तब उन्होंने कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत रखने और ब्राह्मणों को भोजन कराकर, इस पाप कर्म के लिए क्षमा मांगने को कहा. राजा ने ऐसा ही किया. साल भर बाद यमदूत राजा को फिर लेने आए, इस बार वे उन्हें नरक के बजाय विष्णु लोक ले गए. तब से कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को दीप जलाने की परंपरा शुरू हुई. ताकी अनजाने में हुए पाप को भी क्षमादान मिल सके.

एक अन्य कथा...

रूप चतुर्दशी की कथा

    नरक चतुर्दशी को रूप चतुर्दशी भी कहते हैं. इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की भी पूजा का विधान है. भगवान श्री कृष्ण का पूजन करने से व्यक्ति को सौंदर्य की प्राप्ति होती है. रूप चतुर्दशी से संबंधित एक कथा प्रस्तुत है.

    प्रचलित मान्यता के अनुसार, प्राचीन समय में  हिरण्यगर्भ नाम का राज्य था, उसमें एक योगी रहते थे. एक बार योगीराज ने, प्रभु को पाने की इच्छा से समाधि धारण की. लगातार कठोर तपस्या के कारण उन्हें अनेक कष्टों का सामना करना पडा. अपनी लगातार  तपस्या के कारण, वे अपने शरीर का ध्य़ान रखने में असमर्थ हो गए. जिससे उनकी दशा वीभत्स हो गई. अपनी  वीभत्स दशा के कारण वह बहुत दुखी रहते थे

तभी विचरण करते हुए, नारद जी उन योगी राज जी के पास आकर,  उनसे उनके दुख का कारण पूछते हैं. योगीराज उनसे कहते हैं, हे मुनिवर! मैं प्रभु को पाने के लिए उनकी भक्ति में लीन रहा, परंतु मुझे इस कारण अनेक कष्ट हुए, मेरे शरीर कि दशा वीभत्स हो गई है, ऐसा क्यों हुआ?”



    योगी की करुण गाथा सुनकर, नारदजी उनसे कहते हैं, “हे योगीराज! तुमने मार्ग तो उचित अपनाया, किंतु देह आचार का पालन नहीं कर पाए. इस कारण तुम्हारी यह दशा हुई है. नारदजी ने उन्हें तपस्या के साथ अच्छे स्वास्थ्य, नियमित आहार-विहार और योगादि के सभी गूङ सिद्धांत समझाए . साथ ही नारदजी ने उनसे कहा, कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन व्रत रखकर, भगवान विष्णु की पूजा आराधना करो.  नारदजी के कथनों के अनुसार योगी ने व्रत किया. और व्रत के प्रभाव स्वरूप उनका शरीर पहले जैसा स्वस्थ और सुंदर हो गया. इसलिए इस चतुर्दशी को रूप चतुर्दशी के नाम से जाना जाने लगा.

   रूप चतुर्दशी के दिन सुबह तङके स्नान करने का बहुत महत्व है. तेल, उबटन के साथ अभ्यंग स्नान करने से न केवल स्वर्ग की प्राप्ति होती है, वरन् अद्भुत सौंदर्य की भी प्राप्ति होती है.

दीपावली पर्व की शुभकामनाओं के साथ,



जल्दी ही मिलते हैं, नई कहानियों के साथ...


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