DHANTERAS KI KATHA IN HINDI
धनतेरस की कहानियां
धनतेरस , जिसे धन त्रयोदशी या धन्वंतरि त्रयोदशी के रूप में भी जाना जाता है, विक्रम संवत में कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष के तेरहवें चंद्र दिवस पर धनतेरस मनाया जाता है. यह दीवाली के त्योहार का पहला दिन है. इस वर्ष 2019 में धनतेरस शुक्रवार, 25 आक्टोबर को है.
हिन्दू पुराणों के अनुसार, इस दिन भगवान धन्वंतरि का जन्म हुआ था. धनतेरस पर भगवान धन्वंतरि की पूजा होती है। भगवान धन्वंतरि, समुद्र मंथन के दौरान समुद्र से उत्पन्न हुए. उनके एक हाथ में अमृत से भरा कलश था और दूसरे हाथ में आयुर्वेद का पवित्र ग्रंथ था. वे आयुर्वेद के देवता हैं, जिन्होंने मानव जाति की भलाई के लिए संसार को आयुर्वेद का ज्ञान दिया और बीमारी के कष्ट से छुटकारा पाने में संसार की मदद की. धन्वंतरि को देवताओं का वैद्य माना जाता है.
धन तेरस की कई कहानियां प्रचलित है.
पहली कहानी...
एक बार भगवान विष्णु मृत्यु लोक के भ्रमण के लिए पृथ्वी पर जाने लगे तो
लक्ष्मी जी भी साथ जाने की जिद करने लगी। विष्णु भगवान ने कहा मुझे तो सृष्टि के
पालन हेतु जाना है, आप चलकर क्या करोगी.
लक्ष्मी जी ने जिद की और साथ में चल पङी. घूमते-घूमते कुछ समय बाद विष्णु जी ने लक्ष्मी जी से कहा कि मैं किसी काम से दक्षिण दिशा की ओर जा रहा हूँ. तुम उधर मत देखना, यह कह कर भगवान
चले गए.
कुछ देर तो लक्ष्मी जी ने दक्षिण दिशा की ओर रुख नहीं किया लेकिन जल्दी ही
उस ओर के प्रति उनका कुतूहल बढने लगा. समय बिताने के लिए लक्ष्मी जी उस ओर चलने
लगी. कुछ दूर चलने के बाद उन्हें सरसों और गन्ने के खेत दिखाई दिए. वे पास के
सरसों के खेत से फूल तोड़कर श्रंगार करने लगी और गन्ना तोड़कर खाने लगी।
विष्णु जी वापस आये तो लक्ष्मी जी
को गन्ना खाते देख क्रोधित होकर बोले, बिना पूछे
गन्ना तोड़कर खाने के कारण, तुम खेत के मालिक किसान की बारह वर्ष तक सेवा करो. ऐसा कह कर भगवान लक्ष्मी जी को वही छोड़कर, क्षीर सागर में
विश्राम करने चले गए. इधर लक्ष्मी जी किसान के घर चली गई, उनके पाँव रखते ही किसान
का घर धन धान्य से संपन्न होगा.
बारह वर्ष के
बाद विष्णु जी लक्ष्मी जी को लेने आये. लक्ष्मी जी उनके साथ वापस जाने लगी तो
किसान हर प्रकार से उन्हें रोक रहा था. तब विष्णु भगवान ने किसान को कुछ कौड़ियां देकर कहा, "तुम परिवार सहित गंगा में
जाकर स्नान करो और इन कौड़ियों को जल में छोड़ देना. जब तक तुम नहीं लौटोगे, हम यही
तुम्हारा इंतजार करेंगे", किसान मान गया.
किसान गंगा
स्नान के लिए चला गया. किसान ने गंगा स्नान करके, जैसे ही कौड़ियां जल में डाली, वैसे
ही जल से चार हाथ निकले और कौड़ियां लेकर जाने लगे. तो किसान ने आश्चर्य से देखा और गंगा जी
से पूछा, "ये चार भुजाएं किसकी थी?" तो गंगा जी बोली, "हे किसान ! वे चारों हाथ मेरे ही थे, तूने जो कौड़ियां मुझे भेंट की, वह तुम्हें किसने दी?"
किसान बोला, "मेरे घर एक महापुरुष आये हुए है, उन्होंने दी है." गंगा जी किसान से बोली, "तुम्हारे घर जो
महापुरुष आये हुए हैं वो और कोई नहीं, विष्णु भगवान है और जो स्त्री हैं, वह लक्ष्मी
जी हैं. तुम लक्ष्मी जी को जाने मत देना अन्यथा तुम पहले की भांति निर्धन हो
जाओगे."
किसान वापस लौट कर आया तो भगवान से कहने लगा, "मैं लक्ष्मी जी को वापस नहीं जाने दूँगा." तब भगवान ने उसे समझाते हुए कहा, "बिना पूछे गन्ना खाने के कारण, मैंने इन्हें क्रोध में श्राप दे दिया था. इस वजह से ये तुम्हारे साथ बारह वर्ष तक रही. लक्ष्मी वैसे भी चंचला हैं, ये एक जगह नहीं टिकती. बड़े-बड़े राजा महाराजा भी इनको नहीं रोक पाते."
किसान वापस लौट कर आया तो भगवान से कहने लगा, "मैं लक्ष्मी जी को वापस नहीं जाने दूँगा." तब भगवान ने उसे समझाते हुए कहा, "बिना पूछे गन्ना खाने के कारण, मैंने इन्हें क्रोध में श्राप दे दिया था. इस वजह से ये तुम्हारे साथ बारह वर्ष तक रही. लक्ष्मी वैसे भी चंचला हैं, ये एक जगह नहीं टिकती. बड़े-बड़े राजा महाराजा भी इनको नहीं रोक पाते."
किसान जिद करने
लगा, तो लक्ष्मी जी ने कहा, "हे पुत्र! यदि तुम मुझे रोकना चाहते हो, तो सुनो. कल
धनतेरस है, तुम
अपना घर स्वच्छ रखना, रात्रि में घी का दीपक जला कर रखना, तब
मैं तुम्हारे घर आऊँगी. उस समय तुम मेरी पूजा करना. मैं तुम्हें दिखाई तो नहीं
दूँगी, पर तुम्हारी मुझे रोकने की इच्छा जरूर पूरी होगी." किसान ने कहा, "ठीक है, मैं
ऐसा ही करूँगा." यह सुनते ही लक्ष्मी जी दसों दिशाओं में फैल गयी, देखते ही देखते अद्रश्य हो
गई.
अगले दिन किसान
ने लक्ष्मी जी के कहे अनुसार, उनका पूजन किया. उसका घर धन धान्य से पूर्ण हो गया. उस दिन
से वह हर वर्ष धनतेरस के दिन माँ लक्ष्मी का पूजन करने लगा. उस
किसान की तरह सभी लोग धन तेरस के दिन पूजा करने लगे और माँ लक्ष्मी की कृपा सब पर
होने लगी.
दूसरी कहानी...
एक प्राचीन किंवदंती के अनुसार एक बार हेम नामक राजा की पत्नी
ने जब एक पुत्र को जन्म दिया, तो ज्योतिषियों ने नक्षत्र गणना करके बताया कि यह
बालक जब भी विवाह करेगा, उसके चार
दिन बाद ही मर जाएगा. यह जानकर उस राजा ने बालक को यमुना तट की एक गुफा में
ब्रह्मचारी के रूप में रखकर बड़ा किया. इसी तरह सोलह वर्ष बीत गए.
एक दिन जब महाराजा हंस की युवा बेटी यमुना तट पर घूम रही थी तो उस
ब्रह्मचारी युवक ने मोहित होकर उससे गंधर्व विवाह कर लिया. जब राजकुमारी को उसकी कुंडली में, उसकी शादी के चौथे दिन, सांप के
काटने से उसकी मृत्यु की भविष्यवाणी का पता चला. तो पहले तो वह बहुत परेशान हुई.
फिर उसने इस समस्या का हल निकलवाया और उस हल के अनुसार यदि वह सारी रात जागता रहेगा तो
उसे सांप के रुप यमदूत काट नहीं पाएगा.
उस चौथे दिन
पर, उस राजकुमारी नव विवाहित
पत्नी ने उसे ना सोने के लिए बादध्य़ किया. उसने शयनकक्ष के प्रवेश द्वार पर अपने सारे गहने और
ढेर सारे सोने और चाँदी के सिक्के बिछा दिए. सारे भवन में ढेर सारे दीपक जला दिए. फिर उसने कहानियां
सुनाना प्रारंभ कर दिया, जिससे राजकुमार को नींद न
आए. उसने अपने पति को सोने से बचाने के लिए गीत गाने शुरु कर दिए. जब मृत्यु के देवता का यमदूत, एक
सर्प के रुप में राजकुमार के शयनकक्ष के दरवाजे पर पहुंचा, तो उसकी आँखें चौंधिया गईं. दीपकों के प्रकाश और आभूषणों की चमक से, वह लगभग अंधा हो गया.
यमदूत राजकुमार के कक्ष में तब तक प्रवेश नहीं
कर सकता था, जब तक वह सो न जाए. इसलिए
वह सोने के सिक्कों के ढेर के ऊपर चढ़ गया और पूरी रात वहाँ बैठकर कहानियां और गीत
सुनता रहा. इसी तरह सुबह हो गई और उसके काटने की, काल की घङी, टल चुकी थी. वह चुपचाप
चला गया. इस प्रकार, युवा
राजकुमार को उसकी नई दुल्हन ने, चतुराई से मौत के चंगुल से बचा लिया. वह दिन धनतेरस
का था. तभी से यह दिन यमराज के प्रकोप से बचने के रूप में मनाया जाने लगा.
धनतेरस पर सायंकाल को यम देवता के निमित्त घर की दक्षिण दिशा में दीपक जला कर रखा जाता है.
मान्यता है कि ऐसा करने से अकाल मृत्यु से सुरक्षा मिलती है और पूरा परिवार स्वस्थ
रहता है.
जल्दी मिलते हैं, दीवाली की अन्य कहानियों के साथ.....
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