शिव-पार्वती और नन्दी की कथा
शिव-पार्वती और नन्दी एक बार पार्वतीजी ने शिवजी से पूछा , “ मृत्युलोक पृथ्वी पर मनुष्य इतने दुखी क्यों हैं ?”. जगत जननी अपनी संतानों को निरंतर दुख और क्लेश में घिरा देख कर द्रवित थीं. इसपर शंकर भगवान बोले , “ प्रिये !, मनुष्य के दुख का सबसे बङा कारण, उसकी परनिंदा करने कि आदत है. प्रत्येक व्यक्ति दूसरे में कमियाँ ही कमियाँ देखता है. उसे सामने वाला व्यक्ति हर परिस्थिति में गलत ही लगता है. भगवत भजन के स्थान पर परनिन्दा में ही लीन रहता है और अपने आप को महान और निष्पाप सिद्ध करने में लगा रहता है. ”, इस बात को सुनकर पार्वतीजी कुछ बोली तो नहीं, पर सहमत भी नहीं हुईं. भोलेनाथ उनकी शंका को समझ गए. “ बहुत दिन हो गये हैं, कहीं घूमने गए हुए , चलो पृथ्वी पर घूम कर आते हैं. ” शंकर भगवान ने देवी का मन बहलाने के लिए कहा. इस प्रस्ताव से पार्वतीजी बहुत प्रसन्न हुईं और तुरंत तैयार हो गयीं. पति के साथ घूमने जाने का अवसर था इसलिए उन्होंने सुन्दर-सुन्दर वस्त्र पहने , खूब श्रंगार किया और लावण्यमयी तरुणी के ...