ORIGIN OF JYOTISH KNOWLEDGE- A HINDI STORY FROM PURAN
ज्योतिष ज्ञान के उद्भव की कहानी एक बार भगवान् नारायण क्षीर सागर में शेष शय्या पर विश्राम कर रहे थे , लक्ष्मी चरण दबा रही थीं , बङा ही मनोरम दृश्य था. उसी समय महर्षि श्रेष्ठ भृगु वैकुण्ठ पहुंचे। भृगु किसी कारणवश बहुत क्रोध में थे और विष्णु भगवान से तुरंत मिलना चाहते थे। भगवान के द्वारपाल जय-विजय ने उन्हें प्रणाम कर कहा , " नारायण इस समय विश्रामाधीन हैं अत: उन तक आपको जाने देना संभव नहीं है।" महर्षि रुष्ट हुए व जय-विजय को शाप दिया, "तुम्हें मुझे रोकने के अपराध में तीन बार राक्षस योनि में जन्म लेकर पृथ्वी पर रहना होगा।" जयविजय मौन नतमस्तक खड़े हो गए । इधर क्रोध के अभिभूत भृगु उस स्थान पर जा पहुंचे, जहाँ भगवान शयन कर रहे थे। विष्णु को शयन करते देख भृगु ऋषि का क्रोध उमड़ पड़ा , उन्होंने सोचा , " मुझे देख विष्णु ने जान-बूझकर आंखें मूंद ली हैं। मेरी अवज्ञा कर रहे हैं।" क्रोध में उफनते ऋषि ने उसी समय श्री विष्णु के वक्षस्थल पर अपने दाएं पैर का प्रहार किया , विष्णुजी की आंखें खुल गईं , वे उठ खङे हुए और हाथ जोड़ प्रार्थना कर...